6.13 श्रमिकोंका एकाधिपत्य मार्क्सका कहना है कि ‘श्रमजीवियोंके एकाधिकारके सिद्धान्तका जन्मदाता वह स्वयं ही है। उसने १८५२ में अपने एक अमेरिकन मित्रको पत्रमें लिखा था कि वर्ग-कलहका सिद्धान्त यद्यपि पहलेसे ही हुआ था, तथापि वर्गोंके अस्तित्वका सम्बन्ध भौतिक उत्पत्तिकी किसी विशेष अवस्थासे होता है और वर्ग-कलहका अन्तिम परिणाम श्रमजीवियोंका एकाधिपत्य स्थापित होना है। यह श्रमजीवियोंका… Continue reading 6.13 श्रमिकोंका एकाधिपत्य ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
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6.2 व्यक्तिगत सम्पत्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.2 व्यक्तिगत सम्पत्ति भारतीय धार्मिक, राजनीतिक शास्त्रोंने व्यक्तिगत सम्पत्तियोंको वैध माना है। मन्वादि धर्मशास्त्र, मिताक्षरा आदि निबन्धग्रन्थमें कहा गया है कि पितृपितामहादिकी सम्पत्तियोंमें पुत्रपौत्रादिका जन्मना स्वत्व है। गर्भस्थ शिशुका भी पिता-पितामहादिकी सम्पत्तिमें स्वत्व मान्य है। अतएव दायके रूपमें प्राप्त चल, अचल धन पुत्रादिका वैध धन है। इसी प्रकार निधि लाभ, मित्रोंसे मिली, विजयसे प्राप्त, गाढ़े… Continue reading 6.2 व्यक्तिगत सम्पत्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.8 वैयक्तिक स्वतन्त्रता ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.8 वैयक्तिक स्वतन्त्रता स्टुअर्टकी पुस्तक ‘स्वतन्त्रता’ (लिबर्टी, १८५९) व्यक्तिगत स्वतन्त्रताका सर्वोत्कृष्ट समर्थन करनेवाली है। व्यक्तिकी स्वतन्त्रता एवं व्यक्तित्वके लिये ‘मिल’ ने व्यक्तिवादको आवश्यक बतलाया। उसका कहना था कि ‘मानव-प्रगतिके लिये विचार एवं भाषणकी स्वतन्त्रता अत्यावश्यक है।’ कहते हैं, वह सनकी लोगोंकी भी स्वतन्त्रताका समर्थक था। उसका कहना था कि ‘इनमेंसे न जाने किसके विचारसे किसी… Continue reading 3.8 वैयक्तिक स्वतन्त्रता ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज