6.17 लाभ और श्रमिक ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.17 लाभ और श्रमिक मार्क्सके पहले रिकार्डो आदिने भी इसी ढंगका कुछ विरोध प्रकट किया था। उसके अनुसार ‘वस्तुके मूल्यमें दो भाग होते हैं—एक मजदूरी दूसरा नफा। दोनों परस्पर विरुद्ध हैं। मजदूरी बढ़ती है तो नफा घटता है, नफा बढ़ता है तो मजदूरी घटती है। जीवन-निर्वाहार्थ जिससे निश्चित परिमाणमें सामग्री मिले, वही मजदूरी है। जब… Continue reading 6.17 लाभ और श्रमिक ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.13 श्रमिकोंका एकाधिपत्य ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.13 श्रमिकोंका एकाधिपत्य मार्क्सका कहना है कि ‘श्रमजीवियोंके एकाधिकारके सिद्धान्तका जन्मदाता वह स्वयं ही है। उसने १८५२ में अपने एक अमेरिकन मित्रको पत्रमें लिखा था कि वर्ग-कलहका सिद्धान्त यद्यपि पहलेसे ही हुआ था, तथापि वर्गोंके अस्तित्वका सम्बन्ध भौतिक उत्पत्तिकी किसी विशेष अवस्थासे होता है और वर्ग-कलहका अन्तिम परिणाम श्रमजीवियोंका एकाधिपत्य स्थापित होना है। यह श्रमजीवियोंका… Continue reading 6.13 श्रमिकोंका एकाधिपत्य ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.9 एकसत्तावाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.9 एकसत्तावाद एकसत्तावाद भी एक राजनीतिक वाद है। इसके अनुसार एक प्रादेशिक राशिमें केवल एक ही सर्वोच्च सत्ताधारी व्यक्ति-विशेषोंका व्यक्तिसंघ होता है। सभी नागरिक एवं संस्थाएँ इस सत्ताधारी संस्थाके अधीन होती हैं। राज्यको राजसत्ताधारी संस्था माननेवाले दार्शनिक ‘अद्वैतवादी’ या ‘एकसत्तावादी’ कहलाते हैं। ‘राजसत्ता’ शब्द श्रेष्ठता अर्थमें प्रयुक्त होता है। तदनुसार श्रेष्ठता-राज्यकी विशेषता है, अन्य किन्हीं… Continue reading 3.9 एकसत्तावाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

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