1.4 हीगेल-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

1.4 हीगेल-दर्शन हीगेल (१७७०-१८३१)-ने काण्टकी वस्तुस्वरूप धारणाका खण्डन किया और बतलाया कि ‘वस्तुको उसके आवेष्टन गुणों और अवस्थाओंसे अलग करके देखना ही वस्तु स्वरूपकी धारणा है, परंतु ऐसा सम्भव नहीं। अत: वह ज्ञानसे परे है।’ हीगेलके जगत‍्का भी स्रष्टा मन ही है, काण्टके असल जगत् एवं दृश्यमान जगत‍्के द्वित्वका भी इसने खण्डन किया है। स्पिनोजाके… Continue reading 1.4 हीगेल-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

1.3 अन्य पाश्चात्य-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

1.3 अन्य पाश्चात्य-दर्शन रोजेनिलस आदि दार्शनिक धर्मविरोधी थे। रोजर बेकन इत्यादिने विचार-स्वातन्त्र्यमें धर्मको कुछ नहीं गिना। धर्मके विषयमें यूरोपमें उस समय सुधारकी भावना उद‍्भूत हुई तथापि वे सुधारक भी संकुचित वृत्तिके थे। कैलविनने सुधारक होते हुए भी ‘रक्तसंचालन’ के तथ्यके आविष्कारमें लगे हुए सर्विटसको जीवित ही जलवा दिया था। बेकनका कहना है कि ‘सर्वत्र श्रेष्ठ… Continue reading 1.3 अन्य पाश्चात्य-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

1.2 यूनानी-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

1.2 यूनानी-दर्शन पाश्चात्य-दर्शन प्राय: मनतक ही पहुँचते हैं। आत्मवादी भी मन और आत्माका अभेद मानते हैं। इस सृष्टिके पहलेकी सृष्टियोंका विचार भी उन लोगोंने नहीं किया। ‘मैटर’ या भूतसमुदाय यद्यपि बहुत सूक्ष्म माना जाता है तथापि वह सांख्यीय प्रकृतिसे भिन्न है। यही कारण है कि आत्माका विचार उनके लिये बहुत दूरकी बात हो गयी है।… Continue reading 1.2 यूनानी-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

Exit mobile version