6.10 संघटनकी कुंजी यह तो हुई विघटनकी बात। अब जहाँ ‘सङ्घे शक्ति: कलौ युगे’ की बात आजकल बहुत होती है, वहाँ भी संघटनकी योजनाएँ कैसे सफल हों, इस विषयमें सभी परेशान हैं। वास्तवमें जो संघटनपर रातों-दिन व्याख्यान दे और लेख लिख रहे हैं, जो स्वयं प्रान्त, समाज, राष्ट्रके संघटनपर जमीन-आसमानके कुलाबे एक किया करते हैं,… Continue reading 6.10 संघटनकी कुंजी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
Category: दर्शन
6.9 श्रेणीभेदका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.9 श्रेणीभेदका आधार मार्क्स कहता है—‘जैसे पशुओं, वनस्पतियों, धातुओंमें श्रेणीभेद है, वैसे मनुष्योंमें भी श्रेणीभेद है और वह आर्थिक आधारपर ही उचित है। जिस उपायसे मनुष्यसमुदाय अपनी रोजी कमाता है, वही उसका प्रधान लक्षण है। वेतन, मजदूरी आदिसे निर्वाह करनेवाले लोग श्रमजीवी वर्गमें आते हैं, पूँजी (जमीन, मकान, कारखाने, खानें) द्वारा कमानेवाले लोग पूँजीपति वर्गमें… Continue reading 6.9 श्रेणीभेदका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.8 वास्तविक पूँजीवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.8 वास्तविक पूँजीवाद कहा जाता है कि ‘पूँजीवादी समाज भी प्राचीन वर्गोंके समान ही उसी वर्गकलहपर एक दलके द्वारा दूसरे दलके रक्तशोषणपर ही स्थिर है। साथ ही उसी पूँजीवादके द्वारा ही मनुष्यको वह उत्पादन-शक्ति भी प्राप्त होती है, जिसके द्वारा भौतिक बन्धनों और प्राकृतिक गुलामीसे मनुष्यको छुटकारा मिलता है और वह वर्गकलहको त्यागकर बौद्धिक सभ्यता… Continue reading 6.8 वास्तविक पूँजीवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.7 वर्ग-विद्वेष ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.7 वर्ग-विद्वेष कहा जाता है कि ‘जिन प्राचीन हब्शी-भिल्ल आदि जंगली जातियोंमें प्राचीनकालके अनुसार जीवन व्यतीत होता है, उनमें व्यक्तिगत सम्पत्तिका अभाव है अथवा उन्नति नहीं हुई। उनमें न वर्ग-भेद है, न किसी वर्ग-विशेषका अधिकार है—न वर्ग-विरोध है। गाँवके मुखिया, पण्डित, पंच, प्रचलित रीतियों, धार्मिक अनुष्ठानोंका पालन कराते हैं, परंतु व्यापारकी वृद्धि और युद्धोंके फलस्वरूप… Continue reading 6.7 वर्ग-विद्वेष ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.6 उत्पादन और नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.6 उत्पादन और नियम उत्पत्तिके पुराने साधनों एवं पद्धतियोंमें रद्दोबदल होनेसे उत्पादनमें विस्तार अवश्य हो जाता है, उत्पन्न वस्तुओंमें सस्तापन भी आता है तथा आमदनीमें भी वृद्धि हो जाती है। पर माल खपतके लिये बाजारोंकी आवश्यकता, माल भेजने तथा कारखानोंके लिये कोयले, पेट्रोलके खानोंकी आवश्यकता, बाजारों एवं कोयले-पेट्रोल आदिके लिये संघर्ष एवं बेकारीकी समस्या अवश्य… Continue reading 6.6 उत्पादन और नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.5 आर्थिक असंतुलन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.5 आर्थिक असंतुलन आर्थिक असंतुलन मिटानेके लिये ही शास्त्रोंमें दानका महत्त्व कहा गया है। अपनी श्रद्धासे, दूसरोंके उपदेशसे, लज्जासे, भयसे किसी तरह भी देना परम कल्याणकारी है। शास्त्रोंमें यह भी कहा गया है कि जो धनी होकर दानी नहीं और निर्धन होकर तपस्वी नहीं, ऐसे लोग गलेमें पत्थर बाँधकर समुद्रमें डुबा देने योग्य होते हैं—… Continue reading 6.5 आर्थिक असंतुलन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.4 शोषक-शोषित ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.4 शोषक-शोषित भूमि आदिके लिये युद्ध, संघर्ष होने; मालिक-गुलाम, शोषक-शोषित, उत्पीड़क-उत्पीड़ित आदिकी कल्पना तो ह्रासकालकी बात है। सृष्टिके प्रारम्भकालमें सम्पूर्ण प्रजा धर्म-नियन्त्रित थी। उस समय सत्त्वगुणका पूर्ण विस्तार था। सभी समझते थे कि सभी प्राणी अमृतके पुत्र हैं—‘अमृतस्य पुत्रा:।’ सभी प्राणियोंकी सहज समानता, स्वतन्त्रता एवं भ्रातृताकी मूल आधार भित्तिको समझते थे। व्यवहारमें सब एक दूसरेके… Continue reading 6.4 शोषक-शोषित ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.3 शाश्वत नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.3 शाश्वत नियम पर सिद्धान्तत: राज्यशक्तिको किसी भी धार्मिक, आध्यात्मिक नियन्त्रणमें ही रहना उचित है, अन्यथा अनियन्त्रित उच्छृंखल राज्यशक्ति राष्ट्रके लिये भीषण सिद्ध हो सकती है। ‘बृहदारण्यक उपनिषद्’ में कहा गया है कि ‘धर्म क्षत्रका भी क्षत्र है’, अर्थात् धर्मपर राजाका शासन नहीं चलता, अपितु राजापर धर्मका शासन चलता है। जैसे बिना नकेलके ऊँट, बिना… Continue reading 6.3 शाश्वत नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.2 व्यक्तिगत सम्पत्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.2 व्यक्तिगत सम्पत्ति भारतीय धार्मिक, राजनीतिक शास्त्रोंने व्यक्तिगत सम्पत्तियोंको वैध माना है। मन्वादि धर्मशास्त्र, मिताक्षरा आदि निबन्धग्रन्थमें कहा गया है कि पितृपितामहादिकी सम्पत्तियोंमें पुत्रपौत्रादिका जन्मना स्वत्व है। गर्भस्थ शिशुका भी पिता-पितामहादिकी सम्पत्तिमें स्वत्व मान्य है। अतएव दायके रूपमें प्राप्त चल, अचल धन पुत्रादिका वैध धन है। इसी प्रकार निधि लाभ, मित्रोंसे मिली, विजयसे प्राप्त, गाढ़े… Continue reading 6.2 व्यक्तिगत सम्पत्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6. वर्ग-संघर्ष – 6.1 सापेक्ष और शाश्वत नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6. वर्ग-संघर्ष ‘वर्गसंघर्ष’ मार्क्सवादका एक मूल सिद्धान्त है। ऐतिहासिक विवेचनसे वह इसी निष्कर्षपर पहुँचता है कि समाजका विकास वर्गसंघर्षसे प्रभावित होता है। समाजमें दो वर्ग होते हैं—शोषित तथा शोषक। उत्पादनके साधनोंपर जिनका अधिकार होता है, वह शोषक वर्ग है; दूसरा शोषित। प्रत्येक नियम, रीति, रिवाज, दर्शन, कला, इतिहास—सभी वर्ग-संघर्षके विचारोंसे प्रभावित होते हैं। उत्पादनके साधनोंमें… Continue reading 6. वर्ग-संघर्ष – 6.1 सापेक्ष और शाश्वत नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज