13. मार्क्स और ईश्वर मार्क्सवादी विद्वान् धर्मके समान ही ईश्वरको भी अनावश्यक समझते हैं। उनकी दृष्टिमें ‘भीरुता या भ्रान्तिके कारण कल्पनाप्रसूत भूत-प्रेत ही सभ्यताके साबुनसे धुलते-धुलते देवता बन गया और फिर वह कल्पित देवता ही विज्ञानकी चमत्कृतिसे चमत्कृत होकर ईश्वर या निर्गुण ब्रह्म बन गया। ईश्वर या ब्रह्म न तो कोई वास्तविक वस्तु है, न… Continue reading 13. मार्क्स और ईश्वर – 13.1 ईश्वरके सम्बन्धमें भारतीय दर्शनोंके आधारपर मार्क्सवादियोंके विचार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
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12. मार्क्स और आत्मा – 12.1 आत्मतत्त्व-विमर्श ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
12. मार्क्स और आत्मा शास्त्र-संस्कारवर्जित जनसाधारण तथा भूतसंघातवादी चार्वाक और आधुनिक मार्क्सवादी जीवित देहको ही आत्मा कहते हैं; क्योंकि ‘मनुष्योऽहं जानामि’ मैं मनुष्य हूँ, जानता हूँ, इस रूपसे ही शरीर ही ‘अहं’ प्रत्ययका आलम्बन और ज्ञानके आश्रयरूपसे आत्मा प्रतीत होता है। दूसरे लोग इन्द्रियोंको ही आत्मा कहते हैं। उनके मतसे ‘चक्षु, श्रोत्रादि इन्द्रियोंके बिना रूपादि-ज्ञान… Continue reading 12. मार्क्स और आत्मा – 12.1 आत्मतत्त्व-विमर्श ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
11. मार्क्स और ज्ञान – 11.1 मन और शरीर ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
11. मार्क्स और ज्ञान (मार्क्सीय मन या ज्ञानपर विचार) मोरिस कौर्न फोर्थकी ‘दि थ्योरी ऑफ नालेज’ में कहा गया है कि—‘मन शरीरसे विभाज्य नहीं है। मानसिक क्रियाएँ मस्तिष्ककी क्रियाएँ हैं। मस्तिष्क प्राणीके बाह्य जगत्के साथ रहनेवाले जटिलतम सम्बन्धोंका अवयव है। वस्तुओंकी प्रत्ययात्मिका जानकारी (Conscious, awareness) का प्रथम रूप ‘सेंसेशन’ (Sensation) अनुभूति है, जो प्रतिनियत सहज… Continue reading 11. मार्क्स और ज्ञान – 11.1 मन और शरीर ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.15 मार्क्स और धर्म ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.15 मार्क्स और धर्म भौतिकवादियोंका कहना है कि ‘सभ्य मनुष्यका विश्वास है कि आध्यात्मिक शक्ति सदा मंगलमय है, लेकिन असभ्य मनुष्यके लिये यह शक्ति निष्ठुर है, इसलिये सदा ही उसको विपत्तिमें डालती रहती है। पत्थर जब गिरकर आदमीको घायल करता है, अचानक पेड़की डाल टूट जाती है, तब यह सब प्रकारके भूतों या पेड़के भूतकी… Continue reading 9.15 मार्क्स और धर्म ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9. मार्क्स-दर्शन – 9.1 वैज्ञानिक द्वन्द्ववाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9. मार्क्स-दर्शन मार्क्स प्रयोग तथा अनुभवद्वारा प्राप्त ज्ञानको ही वास्तविक ज्ञान मानता है। ‘डाइलेक्टिस’ (द्वन्द्वमान)-की चर्चा हम पहले कर आये हैं। यह एक यूनानी शब्द है, जिसका अर्थ है दो मनुष्योंका वार्तालाप। इसमें एक तर्ककी स्थापना की जाती है, फिर उसका खण्डन होता है, जिससे नये तर्ककी उत्थापना होती है। इस प्रकार एक नीचे दर्जेके… Continue reading 9. मार्क्स-दर्शन – 9.1 वैज्ञानिक द्वन्द्ववाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.5 मार्क्स एवं इतिहास ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.5 मार्क्स एवं इतिहास मार्क्सवादी समाजके विचारों, सिद्धान्तों तथा राजनीतिक संस्थाओंको समाजकी सत्ता और उसकी भौतिक परिस्थितियोंके ही अनुकूल मानते हैं और समाजकी सत्ता एवं भौतिक परिस्थितियाँ उनके मतमें उत्पादन-शक्तियों तथा उत्पादन-सम्बन्धोंपर निर्भर रहती हैं। इन्हींपर समाजका ढाँचा स्थिर होता है। दासयुगमें सामाजिक रीतियाँ अन्य युगोंसे भिन्न थीं। यही बात सामन्तवादी तथा पूँजीवादी युगके लिये… Continue reading 8.5 मार्क्स एवं इतिहास ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.19 कार्ल मार्क्स ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.19 कार्ल मार्क्स मार्क्सका जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवारमें हुआ। पहले उसने वकालतकी शिक्षा ग्रहण की। फिर वह पत्रकार बना, समय पाकर उसने ‘हीगेलवाद’ का अध्ययन किया। मानवतावादसे प्रेरित होकर वह श्रमिक आन्दोलनमें अग्रसर हुआ और शीघ्र ही आन्दोलनका नेता बन गया। उसकी जीविकाका आधार उसके लेख एवं एंजिल्सकी सहायता ही थी। गरीबी अवस्थामें भी उसने… Continue reading 3.19 कार्ल मार्क्स ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.18 मार्क्सवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.18 मार्क्सवाद कार्लमार्क्स (१८१८-१८८३)-के कैपिटल आदि अनेक ग्रन्थोंद्वारा समाजवाद एवं साम्यवादका परिष्कृत रूप व्यक्त हुआ। यों इसका प्रचलन बहुत पूर्वसे ही था। अफलातून, मोर आदिने तथा उनसे भी पहले कई धार्मिक लोगोंने साम्यवादी समाजका चित्रण किया है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की प्रसिद्धि बहुत पुरानी है। किंतु कार्लमार्क्सने साम्यवाद या समष्टिवादको आवश्यक ही नहीं; अपितु अवश्यम्भावी बतलाया।… Continue reading 3.18 मार्क्सवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.17 एफ० एच० ब्रैडले ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.17 एफ० एच० ब्रैडले एफ० एच० ब्रैडले (१८४६-१९२४)-का कहना था कि ‘मनुष्यका समाजसे बाहर कोई अस्तित्व ही नहीं। समाजद्वारा ही उसे भाषा एवं विचार मिलते हैं। मनुष्यका शरीर एक पैतृक सम्पत्ति है, परंतु बिना समाजके यह सम्पत्ति प्रगति नहीं कर सकती। व्यक्तित्व-वृद्धिके लिये समाज अनिवार्य है।’ उसके अनुसार ‘व्यक्तिको समाजमें स्थान चुननेकी स्वाधीनता है, परंतु… Continue reading 3.17 एफ० एच० ब्रैडले ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज