3.16 टी० एच० ग्रीन टी० एच० ग्रीन (१८३६-८२) ब्रिटेनका आदर्शवादी दार्शनिक था। उसने ग्रीक (यूनानी) दर्शन एवं आदर्शवादी दर्शनका अध्ययन किया और एक नया दर्शन (ऑक्सफोर्डदर्शन) निर्मित किया। वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयमें दर्शनका प्रोफेसर था। वह अफलातून, अरस्तूकी तरह राजनीतिशास्त्रको आचारशास्त्रका एक अंग मानता था। रिची, ब्रेडले, बोसांके, लिण्डसे, बार्कर आदि ग्रीन परम्पराके अनुयायी हुए हैं।… Continue reading 3.16 टी० एच० ग्रीन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
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3.15 बोदाँ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.15 बोदाँ बोदाँ (१५३०—१५९६) ने कहा था कि ‘मनुष्यजातिका इतिहास प्रगतिका इतिहास है।’ दो शती बाद हीगेलने इसी सिद्धान्तकी व्याख्या की और उसने बताया कि यदि कभी इसके विपरीत अवनति-सी दृष्टिगोचर होती है तो भी उसे अवनति नहीं मानना चाहिये; किंतु यह घटना प्रगतिकी पृष्ठ-भूमि है। हीगेलके अनुसार मानव-इतिहास केवल कुछ घटनाओंका वर्णन नहीं है;… Continue reading 3.15 बोदाँ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.14 हीगेल ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.14 हीगेल हीगेल (१७७०—१८३१) सर्वश्रेष्ठ आदर्शवादी माना जाता है। कहा जाता है, उसका पिता सरकारी कर्मचारी था। अत: वह पिताके पेशेसे प्रभावित होकर नौकरशाहीका समर्थक हुआ। हीगेल फ्रांसकी राज्यक्रान्तिसे भी प्रभावित था। कहते हैं कि हीगेलका दर्शन केवल एक ही व्यक्ति समझ सका था और उस व्यक्तिने भी उसे गलतरूपमें ही समझा। वह व्यक्ति था… Continue reading 3.14 हीगेल ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.13 फिक्टे ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.13 फिक्टे फिक्टे (१७६२-१८१४) प्रथम मार्टिन लूथरकी धार्मिक शिक्षासे प्रभावित हुआ। १७८४ में वह काण्टके आदर्शवादका अनुयायी हुआ। कहा जाता है कि वह १७९४ तक विश्वबन्धुत्व एवं जनवादका अनुगामी था। इसके पश्चात् उसकी विचारधारामें परिवर्तन हुआ और वह व्यक्तिवादका विरोधी राष्ट्रवादी हो गया। वह अपने गुरु काण्टके विचारोंसे आगे बढ़ा। वह विचारोंपर प्रतिबिम्बरूपमें वस्तुका प्रभाव… Continue reading 3.13 फिक्टे ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.12 काण्ट ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.12 काण्ट काण्ट (१७२४-१८०४) आधुनिक आदर्शवादका जन्मदाता माना जाता है। वह कनिंग्सवर्ग विश्वविद्यालयका अध्यापक था। वह दर्शन एवं राजनीतिशास्त्रका विद्वान् और अध्यात्मवादी था। उसके मतानुसार एक वस्तुका ज्ञान उसकी बनावटसे नहीं, किंतु मस्तिष्कमें पड़े हुए उस वस्तुके प्रतिबिम्बसे होता है। एक वस्तुको हम पुस्तक इसीलिये कहते हैं कि वह हमारे मस्तिष्कके अनुसार पुस्तककी भाँति है।… Continue reading 3.12 काण्ट ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.10 आदर्शवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.10 आदर्शवाद ईसाके पूर्व यूनानी कालमें ‘आदर्शवाद’ का उदय हुआ। आदर्शवादी राज्यको एक आदर्श संस्था मानते हैं और कर्तव्यपरायणता उसकी आधार-शिला कहते हैं। इस दृष्टिसे ‘राज्य और व्यक्ति—दोनों ही कर्तव्यके बन्धनमें आबद्ध होकर आगे बढ़ते हैं। इसमें नागरिककी राजभक्ति और राज्यका मनुष्योंके जीवन-यापनकी सुव्यवस्था करना परम कर्तव्य है। दोनों अन्योन्य-पोषक होते हैं। कहा जाता है… Continue reading 3.10 आदर्शवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.9 एकसत्तावाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.9 एकसत्तावाद एकसत्तावाद भी एक राजनीतिक वाद है। इसके अनुसार एक प्रादेशिक राशिमें केवल एक ही सर्वोच्च सत्ताधारी व्यक्ति-विशेषोंका व्यक्तिसंघ होता है। सभी नागरिक एवं संस्थाएँ इस सत्ताधारी संस्थाके अधीन होती हैं। राज्यको राजसत्ताधारी संस्था माननेवाले दार्शनिक ‘अद्वैतवादी’ या ‘एकसत्तावादी’ कहलाते हैं। ‘राजसत्ता’ शब्द श्रेष्ठता अर्थमें प्रयुक्त होता है। तदनुसार श्रेष्ठता-राज्यकी विशेषता है, अन्य किन्हीं… Continue reading 3.9 एकसत्तावाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.3 जान लॉक ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.3 जान लॉक जान लॉक (१६३२-१७०४) भी समझौतावादी था। उसे सीमित राजतन्त्रमें विश्वास था। उसका पिता ‘प्यूरिटन’ सम्प्रदायका अनुयायी था। ‘लॉक’ १६८८ की रक्तहीन क्रान्तिका दार्शनिक माना जाता है। इंग्लैण्डके जेम्स द्वितीयके पदच्युत होनेपर विलियम और मेरीको राज्यपदके लिये निमन्त्रित किया गया। ‘बिल ऑफ राइट्स’ और ‘ऐक्ट ऑफ सेट्लमेन्ट’ नियमोंद्वारा कार्यपालिका संसद्के अधीन बनी। संसद्का… Continue reading 3.3 जान लॉक ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.2 थामस हॉब्स ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.2 थामस हॉब्स थामस हॉब्स (१५८८-१६७९) ब्रिटेनके गृहयुद्धकाल (१६४२-४९)-का दार्शनिक था। कहा जाता है कि इसकी माताने भयभीत होकर समयसे पहले उसे जन्म दिया था, इसलिये वह भयसे अत्यधिक प्रभावित रहता था। १६४० में इंग्लैण्डकी दीर्घ संसद्की बैठकके समय ब्रिटेनसे भागनेवालोंमें वह सर्वप्रथम व्यक्ति था। उस समय वहाँ राज्यनियम, राजसत्ता, नागरिकता सम्बन्धी विभिन्न विचारधाराएँ प्रचलित… Continue reading 3.2 थामस हॉब्स ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
2.6 ग्रोशस ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
2.6 ग्रोशस ग्रोशस (१५८३—१६४५) अन्ताराष्ट्रिय नियमका जन्मदाता था। सोलहवीं शताब्दी राजनीतिकी दृष्टिसे यदि फ्रांसकी थी तो सत्रहवीं शताब्दी इंगलैण्डकी। ग्रोशसकी पृष्ठभूमि वह युग था, जिसमें यूरोप अनेक धार्मिक मतमतान्तरोंमें विभक्त हो गया था। व्यवहारमें वह मेकियाविलीसे पूर्ण प्रभावित था। फिर भी वह मानवतावादी कहा जाता है। उसके अनुसार युगकी उद्दण्डताका कारण यह था कि ‘मनुष्यने… Continue reading 2.6 ग्रोशस ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज