7.9 श्रम और मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.9 श्रम और मुनाफा कहा जाता है कि ‘पूँजीपतिके हाथमें पूँजी होनेके कारण पैदावारके साधन उसके हाथमें चले जाते हैं। पूँजीसे पूँजी ही पैदा होती है। यह पूँजी भी शोषणसे इकट्ठी होती है। बड़े परिमाणमें मुनाफेके लिये पैदावार आरम्भ होनेसे पहले मामूलीरूपसे व्यापार चलता है, उपयोगकी वस्तुओंको सस्ते दामसे खरीदकर अधिक दाममें बेचकर मुनाफा कमाया… Continue reading 7.9 श्रम और मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.6 लाभ या मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.6 लाभ या मुनाफा कहा जाता है कि ‘बिक्रीके लिये माल या सौदा तैयार करनेवाला मनुष्य माल बनानेके लिये कुछ सामान खरीदता है। खरीदे हुए सामानको अपनी मेहनतसे बिक्रीयोग्य माल या सौदा तैयार करके उसे बाजारमें बेचनेसे जो दाम मिलता है, उसमेंसे खरीदे हुए सामानका दाम निकाल देनेपर बाकी बचा हुआ दाम लाभ या मुनाफा… Continue reading 7.6 लाभ या मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.4 अतिरिक्त लाभ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.4 अतिरिक्त लाभ मशीनोंके आविष्कार होनेपर मशीनोंद्वारा लाखों मजदूरोंका काम हो जाता है। फिर तो मशीनकी कमाईका फल मशीन-मालिकको मिलना ठीक ही है। कहा जाता है कि ‘जमीन खोदनेवाले मजदूरको एक घंटेके परिश्रमका फल उतना नहीं मिलता, जितना कि एक इंजीनियरके परिश्रमका होता है।’ इसका कारण मार्क्सवादियोंकी दृष्टिसे यह है कि ‘जमीन खोदनेका काम मनुष्य… Continue reading 7.4 अतिरिक्त लाभ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.3 मजदूरी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.3 मजदूरी कहा जाता है, ‘यद्यपि मालूम पड़ता है, मजदूरको उसके श्रमके बदले पूरी मजदूरी मिल रही है, परंतु उसको घोड़ाको दाना देनेके तुल्य केवल उतनी ही मजदूरी दी जाती है, जितनेमें वह जीवन-निर्वाह कर सके और उसमें काम करनेकी शक्ति बनी रहे। जब कभी वस्तुओंकी दर घट जाती है, तो मजदूरीका परिमाण ज्यों-का-त्यों बना… Continue reading 7.3 मजदूरी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.2 मूल्य और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.2 मूल्य और श्रम कहा जाता है, ‘मशीनोंके नये आविष्कारों एवं उत्पादनके कामोंमें दक्षता आनेसे कम श्रममें वस्तु उत्पन्न होने लगती है। इसीलिये वस्तुका दाम कम हो जाता है। अत: सिद्ध है कि श्रम ही विनिमय-मूल्यका आधार है।’ पर यह बात ठीक नहीं जँचती। कारण, दूसरा पक्ष यह कह सकता है कि मालकी अधिकताके कारण… Continue reading 7.2 मूल्य और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.17 लाभ और श्रमिक ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.17 लाभ और श्रमिक मार्क्सके पहले रिकार्डो आदिने भी इसी ढंगका कुछ विरोध प्रकट किया था। उसके अनुसार ‘वस्तुके मूल्यमें दो भाग होते हैं—एक मजदूरी दूसरा नफा। दोनों परस्पर विरुद्ध हैं। मजदूरी बढ़ती है तो नफा घटता है, नफा बढ़ता है तो मजदूरी घटती है। जीवन-निर्वाहार्थ जिससे निश्चित परिमाणमें सामग्री मिले, वही मजदूरी है। जब… Continue reading 6.17 लाभ और श्रमिक ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.7 उपयोगितावाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.7 उपयोगितावाद वेन्थम (१७४८-१८३२)-ने उपयोगितावादद्वारा भी व्यक्तिवादी प्रथाका समर्थन किया था। हेनरी-मेनके मतानुसार ‘उस समयके वैधानिक सभी सुधारोंपर वेन्थमके विचारोंकी छाप है। उसके विचारोंके बड़े-बड़े ११ ग्रन्थ हैं। उसने फ्रांस, अमेरिका एवं भारतवर्षके लिये भी विधान बनाये थे। उसने प्रतियोगिताद्वारा कर्मचारियोंकी नियुक्ति, सरकारी विभागोंका संघटन, नोट-मुद्रणकला, उपनिवेशसम्बन्धी मताधिकारके सम्बन्धमें विचार व्यक्त किये हैं। कहा जाता… Continue reading 3.7 उपयोगितावाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

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