7.4 अतिरिक्त लाभ मशीनोंके आविष्कार होनेपर मशीनोंद्वारा लाखों मजदूरोंका काम हो जाता है। फिर तो मशीनकी कमाईका फल मशीन-मालिकको मिलना ठीक ही है। कहा जाता है कि ‘जमीन खोदनेवाले मजदूरको एक घंटेके परिश्रमका फल उतना नहीं मिलता, जितना कि एक इंजीनियरके परिश्रमका होता है।’ इसका कारण मार्क्सवादियोंकी दृष्टिसे यह है कि ‘जमीन खोदनेका काम मनुष्य… Continue reading 7.4 अतिरिक्त लाभ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
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7. मार्क्सीय अर्थ-व्यवस्था – 7.1 मूल्यका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
कहा जाता है, पूँजीवादी समाजके जीवन और गतिका आधार होता है खरीदना, बेचना तथा वस्तुओं एवं श्रमका विनिमय ही परस्पर सम्बन्धका सार है। मार्क्सके मतानुसार ‘पूँजीवादके अन्तर्गत जो माल तैयार होकर बाजारमें जाता है, उसके दो तरहके मूल्य होते हैं—एक उपयोग-सम्बन्धी, दूसरा विनिमयसम्बन्धी। पहलेका अभिप्राय उस वस्तुके गुणसे है, जिससे खरीदनेवालेकी शारीरिक या मानसिक आवश्यकताकी… Continue reading 7. मार्क्सीय अर्थ-व्यवस्था – 7.1 मूल्यका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.12 समाजवादमें लोकतन्त्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.12 समाजवादमें लोकतन्त्र ‘सोवियट कम्युनिज्म’ (रूसी साम्यवाद) नामक पुस्तकमें फेबियन वेव दम्पतिने लिखा है कि ‘जहाँ अमेरिका, ब्रिटेनमें ६० प्रतिशत जनता चुनावमें भाग लेती है, वहाँ सोवियत रूसमें ८० प्रतिशत जनता भाग लेती है। इस आधारपर मार्क्सवादी सर्वहाराका अधिनायकत्व ही वास्तविक जनतन्त्र है। ब्रिटेन, अमेरिकाका जनतन्त्र तो ढोंगमात्र है।’ परंतु दूसरी पार्टीको प्रेस, पत्र, प्रचार… Continue reading 6.12 समाजवादमें लोकतन्त्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.11 जनवादी राजसत्ता ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
3.11 जनवादी राजसत्ता आधुनिक जनवादी नागरिक जनता निर्वाचनद्वारा ही नहीं, किंतु प्रचारद्वारा भी राज्यकी नीतिपर प्रभाव डालती है। भाषण, लेखन, आन्दोलनद्वारा जनमत बनता है। सरकारोंको भी तदनुसार अपनी नीति बनानी पड़ती है। कहा जाता है कि ‘समाजके वास्तविक शासक ढूँढ़े नहीं जा सकते। कभी एक संघ, कभी दूसरा, कभी कोई आन्दोलन, कभी कोई प्रचार सफल… Continue reading 3.11 जनवादी राजसत्ता ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
2.3 अरस्तू ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
2.3 अरस्तू यह यथार्थवादी दार्शनिक था। अपने युगके लगभग १५० संविधानोंका अध्ययन करके इसने ‘पालिटिक्स’ नामक ग्रन्थ लिखा था। इसने प्लेटोकी आगमन-पद्धतिके स्थानपर निगमन-पद्धतिको स्वीकार किया। इसके अनुसार अध्ययनके बाद आदर्शकी स्थापना करनी चाहिये। उसने राजनीतिक तथा आर्थिक—दो पक्षोंसे अध्ययनकर राज्योंको छ: भागोंमें बाँटा। राजतन्त्र, उच्चजनतन्त्र, लोकहिताय जनवादको वह प्राकृतरूपमें मानता था। अत्याचार, सामन्ततन्त्र तथा… Continue reading 2.3 अरस्तू ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
2. पाश्चात्य-राजनीति – 2.1 यूनानका राज्यदर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
पाश्चात्य राजनीतिपर विचार करते समय सर्वप्रथम उसके प्राचीन यूनानी राज्यदर्शनपर विचार करना पड़ता है। वहाँकी सबसे प्राचीन रचनाएँ होमरकृत महाकाव्य ‘इलियड’ तथा ‘ओडेसी’ हैं। इनका महाभारतके साथ इतना साम्य है कि सिकन्दरके सैनिकोंको भ्रम हो गया कि ‘कहीं महाभारत होमरकी रचनाओंका भारतीय संस्करण तो नहीं है।’ उक्त महाकाव्योंमें प्राप्त जीवनदर्शनके अनुसार राजाका स्वरूप सामने आता… Continue reading 2. पाश्चात्य-राजनीति – 2.1 यूनानका राज्यदर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज