10. मार्क्सीय समाज-व्यवस्था मार्क्सके अनुसार ‘समाज’ व्यक्तियों और परिवारोंका समूह है। समाजकी व्यवस्थामें आनेवाला कोई भी परिवर्तन व्यक्तियों और परिवारोंपर प्रभाव डाले बिना नहीं रह सकता। परिवार—स्त्री-पुरुषका सम्बन्ध समाजका केन्द्र है। समाजकी आर्थिक अवस्था मनुष्योंको जिस अवस्थामें रहनेके लिये मजबूर करती है, उसी ढंगपर मनुष्य परिवारको बना लेता है। कुछ देशोंमें बहुत बड़े-बड़े सम्मिलित परिवार… Continue reading 10. मार्क्सीय समाज-व्यवस्था – 10.1 पूँजीवादी युग और स्त्री ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
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9.13 धर्म और अर्थ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.13 धर्म और अर्थ मार्क्सवादी कहते हैं कि धर्म, प्रेम या परोपकारके नामपर सर्वस्व लुटा देने या प्राण न्योछावर कर देनेका भी आधार आर्थिक ही है; क्योंकि सब कुछ सन्तोष-तृप्तिके लिये ही किया जाता है। अन्यायके विरोधमें आत्मबलिदान करता हुआ भी प्राणी सब कुछ स्वार्थके उद्देश्यसे करता है, परंतु यहाँ स्वार्थका अर्थ व्यक्ति न समझकर… Continue reading 9.13 धर्म और अर्थ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.9 सामाजिक व्यवस्था ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.9 सामाजिक व्यवस्था कम्युनिष्ट यह मानते हैं कि ‘मनुष्य जिस किसी भी अवस्थामें रहा हो, उसके समक्ष कुछ सिद्धान्त, नियम एवं आदर्श रहे हैं’ परंतु उनके मतानुसार ‘समाजकी अवस्था बदलनेके साथ उनके सिद्धान्तों, नियमों एवं आदर्शोंमें भी परिवर्तन होता रहता है।’ उनकी इस मान्यताका मूल कारण यही है कि ‘सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान्, विश्वस्रष्टा ईश्वर उनकी समझमें… Continue reading 9.9 सामाजिक व्यवस्था ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.24 पूँजीवादी साम्राज्यवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.24 पूँजीवादी साम्राज्यवाद मार्क्सवादके अनुसार ‘किसी देशका पूँजीवाद जब मुनाफेके लिये अपने देशसे बाहर कदम फैलाता है, तब वह साम्राज्यवादका रूप धारण कर लेता है। प्राचीन समयका साम्राज्यवाद सैनिक आक्रमणके रूपमें आगे बढ़ता था और पराधीन देशोंका शोषण भूमि-करके रूपमें बरतता था। पूँजीवादका साम्राज्य-विस्तार आरम्भ होता है व्यापारसे। फिर अपने व्यापारको दूसरे देशोंके मुकाबलेमें सुरक्षित… Continue reading 7.24 पूँजीवादी साम्राज्यवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.15 भूमि-कर ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.15 भूमि-कर निष्कर्ष यह है कि धर्मनियन्त्रित राज्यतन्त्र एक शुद्ध शास्त्रीय सुव्यवस्था है। उसी व्यवस्थामें रामचन्द्र, हरिश्चन्द्र, दिलीप, शिबि, रन्तिदेव आदि लोकप्रिय आदर्श राजर्षि हुए हैं। वे भी योग्य मन्त्रियों, नि:स्पृह सभ्योंकी सभामें कार्याकार्यका विचार करके प्रजाहितार्थ स्वसर्वस्वकी बाजी लगानेके लिये हर समय प्रस्तुत रहते थे। पर लोलुपलोग उनकी शासन-सभाओंके सभ्य भी नहीं हो सकते… Continue reading 7.15 भूमि-कर ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.13 पूँजीवाद और कृषि ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.13 पूँजीवाद और कृषि कृषिके सम्बन्धमें मार्क्सवादियोंका कहना है कि उद्योग-धन्धोंमें पूँजीवादी ढंगपर संगठित हो जानेसे पहले भी खेती और खेतीसे सम्बन्ध रखनेवाले कारोबार पशुपालन, फलोंको उत्पन्न करना आदि जारी थे और आजतक वे सब काम कहीं उसी रूपमें और कहीं परिवर्तित रूपमें चले जा रहे हैं। ‘पूँजीवादका पहला प्रभाव खेतीपर यह पड़ा कि उद्योग-धन्धोंके… Continue reading 7.13 पूँजीवाद और कृषि ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.4 अतिरिक्त लाभ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.4 अतिरिक्त लाभ मशीनोंके आविष्कार होनेपर मशीनोंद्वारा लाखों मजदूरोंका काम हो जाता है। फिर तो मशीनकी कमाईका फल मशीन-मालिकको मिलना ठीक ही है। कहा जाता है कि ‘जमीन खोदनेवाले मजदूरको एक घंटेके परिश्रमका फल उतना नहीं मिलता, जितना कि एक इंजीनियरके परिश्रमका होता है।’ इसका कारण मार्क्सवादियोंकी दृष्टिसे यह है कि ‘जमीन खोदनेका काम मनुष्य… Continue reading 7.4 अतिरिक्त लाभ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7. मार्क्सीय अर्थ-व्यवस्था – 7.1 मूल्यका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
कहा जाता है, पूँजीवादी समाजके जीवन और गतिका आधार होता है खरीदना, बेचना तथा वस्तुओं एवं श्रमका विनिमय ही परस्पर सम्बन्धका सार है। मार्क्सके मतानुसार ‘पूँजीवादके अन्तर्गत जो माल तैयार होकर बाजारमें जाता है, उसके दो तरहके मूल्य होते हैं—एक उपयोग-सम्बन्धी, दूसरा विनिमयसम्बन्धी। पहलेका अभिप्राय उस वस्तुके गुणसे है, जिससे खरीदनेवालेकी शारीरिक या मानसिक आवश्यकताकी… Continue reading 7. मार्क्सीय अर्थ-व्यवस्था – 7.1 मूल्यका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.16 वितरण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.16 वितरण अतिरिक्त आयका पंचधा विभाजन करके भारतीय शास्त्रोंमें यद्यपि राष्ट्रहितार्थ उसका विनियोग बतलाया है, फिर भी अतिरिक्त आयको अवैध या अनुचित नहीं कहा जा सकता। कोई भी उद्योग यदि लागत खर्च, सरकारी टैक्सभरके लिये भी आमदनी पैदा करता है तो उससे उद्योगपतिका जीवन भी चलाना कठिन होगा और बड़ी-बड़ी मशीनोंके खरीदने आदिका काम भी… Continue reading 6.16 वितरण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.12 समाजवादमें लोकतन्त्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
6.12 समाजवादमें लोकतन्त्र ‘सोवियट कम्युनिज्म’ (रूसी साम्यवाद) नामक पुस्तकमें फेबियन वेव दम्पतिने लिखा है कि ‘जहाँ अमेरिका, ब्रिटेनमें ६० प्रतिशत जनता चुनावमें भाग लेती है, वहाँ सोवियत रूसमें ८० प्रतिशत जनता भाग लेती है। इस आधारपर मार्क्सवादी सर्वहाराका अधिनायकत्व ही वास्तविक जनतन्त्र है। ब्रिटेन, अमेरिकाका जनतन्त्र तो ढोंगमात्र है।’ परंतु दूसरी पार्टीको प्रेस, पत्र, प्रचार… Continue reading 6.12 समाजवादमें लोकतन्त्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज