1.3 अन्य पाश्चात्य-दर्शन रोजेनिलस आदि दार्शनिक धर्मविरोधी थे। रोजर बेकन इत्यादिने विचार-स्वातन्त्र्यमें धर्मको कुछ नहीं गिना। धर्मके विषयमें यूरोपमें उस समय सुधारकी भावना उद्भूत हुई तथापि वे सुधारक भी संकुचित वृत्तिके थे। कैलविनने सुधारक होते हुए भी ‘रक्तसंचालन’ के तथ्यके आविष्कारमें लगे हुए सर्विटसको जीवित ही जलवा दिया था। बेकनका कहना है कि ‘सर्वत्र श्रेष्ठ… Continue reading 1.3 अन्य पाश्चात्य-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
Tag: हरिहरानन्द सरस्वती
1.2 यूनानी-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
1.2 यूनानी-दर्शन पाश्चात्य-दर्शन प्राय: मनतक ही पहुँचते हैं। आत्मवादी भी मन और आत्माका अभेद मानते हैं। इस सृष्टिके पहलेकी सृष्टियोंका विचार भी उन लोगोंने नहीं किया। ‘मैटर’ या भूतसमुदाय यद्यपि बहुत सूक्ष्म माना जाता है तथापि वह सांख्यीय प्रकृतिसे भिन्न है। यही कारण है कि आत्माका विचार उनके लिये बहुत दूरकी बात हो गयी है।… Continue reading 1.2 यूनानी-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
1. पाश्चात्य-दर्शन – 1.1 दर्शनकी परिभाषा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
1. पाश्चात्य-दर्शन मार्क्सवादको समझनेके लिये उसकी पृष्ठभूमिपर एक दृष्टि डालना बहुत आवश्यक है। मार्क्सवादमें दर्शन, राजनीति और अर्थशास्त्र तीनोंका ही समावेश है। किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, मत या वादका स्थायी आधार उसका दर्शन ही होता है। मार्क्सने भी अपनी विचारधाराका आधार दर्शन ही बनाया। भूत, वर्तमान और भविष्यको एक-दूसरेसे पृथक् नहीं किया जा सकता। यूरोपमें… Continue reading 1. पाश्चात्य-दर्शन – 1.1 दर्शनकी परिभाषा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज