2.5 आल्थूसियस अपने पूर्वविचारकोंसे भी अधिक सेक्युलर (लोकायत) था। वह जनताकी प्रभुताका दार्शनिक था। वह राज्यको एक क्रममें मानता था—अर्थात् कुटुम्ब, कारपोरेशन, कम्यून, प्रान्त और उसके बाद राज्य; यह क्रम था। राज्यके बाद कुटुम्ब अधिक महत्त्व रखता था। पूर्ण ढाँचा लौकिक तथा स्पष्ट था। प्रत्येक क्रमके विकासका मूल (समझौता) था। उसने राज्यको जनताका सेवक माना।… Continue reading 2.5 आल्थूसियस ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
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2.4 मध्य युग ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
2.4 मध्य युग रोमन साम्राज्यके पश्चात् यूरोपीय इतिहासका मध्य-काल आरम्भ होता है। इसके दो भाग किये जाते हैं, पूर्वार्ध (अन्धकार-युग) और उत्तरार्ध। पूर्वार्धमें रोमन लोगोंद्वारा निर्मित सड़कोंकी इतिश्री हो गयी थी। यूनानी और रोमन सभ्यताका अन्त-सा हो गया था। लोगोंमें आतंक छाया था। क्रमबद्ध राजनीतिक विचार नष्ट-से हो गये थे। संस्कृति और धर्मका भ्रष्ट स्वरूप… Continue reading 2.4 मध्य युग ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
2.3 अरस्तू ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
2.3 अरस्तू यह यथार्थवादी दार्शनिक था। अपने युगके लगभग १५० संविधानोंका अध्ययन करके इसने ‘पालिटिक्स’ नामक ग्रन्थ लिखा था। इसने प्लेटोकी आगमन-पद्धतिके स्थानपर निगमन-पद्धतिको स्वीकार किया। इसके अनुसार अध्ययनके बाद आदर्शकी स्थापना करनी चाहिये। उसने राजनीतिक तथा आर्थिक—दो पक्षोंसे अध्ययनकर राज्योंको छ: भागोंमें बाँटा। राजतन्त्र, उच्चजनतन्त्र, लोकहिताय जनवादको वह प्राकृतरूपमें मानता था। अत्याचार, सामन्ततन्त्र तथा… Continue reading 2.3 अरस्तू ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
2.2 प्लेटो (अफलातून) ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
2.2 प्लेटो (अफलातून) प्लेटोके दर्शनमें दो पक्ष हैं—आदर्श तथा वास्तविक। अपने समयके स्वरूप अध्ययन करनेके बाद वह इस निष्कर्षपर पहुँचा कि ‘लोग पतनशील हैं।’ उसने एक आदर्श राज्यका चित्रण ‘रिपब्लिक’ नामक ग्रन्थमें किया, किंतु वह अमानवीय हो गया। इसके अनुसार इस आदर्शके निकट जितना ही पहुँचा जायगा, उतना ही कल्याण होगा। इस प्रकार वह आदर्शवादका… Continue reading 2.2 प्लेटो (अफलातून) ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
2. पाश्चात्य-राजनीति – 2.1 यूनानका राज्यदर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
पाश्चात्य राजनीतिपर विचार करते समय सर्वप्रथम उसके प्राचीन यूनानी राज्यदर्शनपर विचार करना पड़ता है। वहाँकी सबसे प्राचीन रचनाएँ होमरकृत महाकाव्य ‘इलियड’ तथा ‘ओडेसी’ हैं। इनका महाभारतके साथ इतना साम्य है कि सिकन्दरके सैनिकोंको भ्रम हो गया कि ‘कहीं महाभारत होमरकी रचनाओंका भारतीय संस्करण तो नहीं है।’ उक्त महाकाव्योंमें प्राप्त जीवनदर्शनके अनुसार राजाका स्वरूप सामने आता… Continue reading 2. पाश्चात्य-राजनीति – 2.1 यूनानका राज्यदर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
1.5 मार्क्स-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
1.5 मार्क्स-दर्शन कार्लमार्क्स (१८१८-८३)-ने हीगेलके द्वन्द्वमानको भौतिकवादसे जोड़ लिया, परंतु मार्क्स मानस या बोधको स्वयंविकास या विवर्त मानता है। इस प्रक्रियाका प्रथम अंश है एक अविभाजित इकाई। यह इकाई दो विरोधी अंशोंमें विभाजित हो जाती है। पुन: इन विरोधोंका समन्वय होकर एक नयी सम्बन्धित इकाईका जन्म होता है। इसी प्रकार सृष्टिका विकास होता रहता है।… Continue reading 1.5 मार्क्स-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
1.4 हीगेल-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
1.4 हीगेल-दर्शन हीगेल (१७७०-१८३१)-ने काण्टकी वस्तुस्वरूप धारणाका खण्डन किया और बतलाया कि ‘वस्तुको उसके आवेष्टन गुणों और अवस्थाओंसे अलग करके देखना ही वस्तु स्वरूपकी धारणा है, परंतु ऐसा सम्भव नहीं। अत: वह ज्ञानसे परे है।’ हीगेलके जगत्का भी स्रष्टा मन ही है, काण्टके असल जगत् एवं दृश्यमान जगत्के द्वित्वका भी इसने खण्डन किया है। स्पिनोजाके… Continue reading 1.4 हीगेल-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
1.3 अन्य पाश्चात्य-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
1.3 अन्य पाश्चात्य-दर्शन रोजेनिलस आदि दार्शनिक धर्मविरोधी थे। रोजर बेकन इत्यादिने विचार-स्वातन्त्र्यमें धर्मको कुछ नहीं गिना। धर्मके विषयमें यूरोपमें उस समय सुधारकी भावना उद्भूत हुई तथापि वे सुधारक भी संकुचित वृत्तिके थे। कैलविनने सुधारक होते हुए भी ‘रक्तसंचालन’ के तथ्यके आविष्कारमें लगे हुए सर्विटसको जीवित ही जलवा दिया था। बेकनका कहना है कि ‘सर्वत्र श्रेष्ठ… Continue reading 1.3 अन्य पाश्चात्य-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
1.2 यूनानी-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
1.2 यूनानी-दर्शन पाश्चात्य-दर्शन प्राय: मनतक ही पहुँचते हैं। आत्मवादी भी मन और आत्माका अभेद मानते हैं। इस सृष्टिके पहलेकी सृष्टियोंका विचार भी उन लोगोंने नहीं किया। ‘मैटर’ या भूतसमुदाय यद्यपि बहुत सूक्ष्म माना जाता है तथापि वह सांख्यीय प्रकृतिसे भिन्न है। यही कारण है कि आत्माका विचार उनके लिये बहुत दूरकी बात हो गयी है।… Continue reading 1.2 यूनानी-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
1. पाश्चात्य-दर्शन – 1.1 दर्शनकी परिभाषा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
1. पाश्चात्य-दर्शन मार्क्सवादको समझनेके लिये उसकी पृष्ठभूमिपर एक दृष्टि डालना बहुत आवश्यक है। मार्क्सवादमें दर्शन, राजनीति और अर्थशास्त्र तीनोंका ही समावेश है। किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, मत या वादका स्थायी आधार उसका दर्शन ही होता है। मार्क्सने भी अपनी विचारधाराका आधार दर्शन ही बनाया। भूत, वर्तमान और भविष्यको एक-दूसरेसे पृथक् नहीं किया जा सकता। यूरोपमें… Continue reading 1. पाश्चात्य-दर्शन – 1.1 दर्शनकी परिभाषा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज