10. मार्क्सीय समाज-व्यवस्था मार्क्सके अनुसार ‘समाज’ व्यक्तियों और परिवारोंका समूह है। समाजकी व्यवस्थामें आनेवाला कोई भी परिवर्तन व्यक्तियों और परिवारोंपर प्रभाव डाले बिना नहीं रह सकता। परिवार—स्त्री-पुरुषका सम्बन्ध समाजका केन्द्र है। समाजकी आर्थिक अवस्था मनुष्योंको जिस अवस्थामें रहनेके लिये मजबूर करती है, उसी ढंगपर मनुष्य परिवारको बना लेता है। कुछ देशोंमें बहुत बड़े-बड़े सम्मिलित परिवार… Continue reading 10. मार्क्सीय समाज-व्यवस्था – 10.1 पूँजीवादी युग और स्त्री ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
Month: June 2025
9.15 मार्क्स और धर्म ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.15 मार्क्स और धर्म भौतिकवादियोंका कहना है कि ‘सभ्य मनुष्यका विश्वास है कि आध्यात्मिक शक्ति सदा मंगलमय है, लेकिन असभ्य मनुष्यके लिये यह शक्ति निष्ठुर है, इसलिये सदा ही उसको विपत्तिमें डालती रहती है। पत्थर जब गिरकर आदमीको घायल करता है, अचानक पेड़की डाल टूट जाती है, तब यह सब प्रकारके भूतों या पेड़के भूतकी… Continue reading 9.15 मार्क्स और धर्म ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.14 उत्पत्तिके साधन और न्याय ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.14 उत्पत्तिके साधन और न्याय मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘न्याय भी सदा एक-सा नहीं रहता; किंतु उसमें रद्दोबदल होता रहता है। जैसे प्राचीन भारतमें शूद्रोंका विद्या पढ़ना अन्याय और एक पुरुषको दो पत्नियाँ रखना न्याय था। विधवाका सती होना महापुण्य था, परंतु आज वह अपराध है। न्याय क्या है, इसका निर्णय रहता है उन लोगोंके… Continue reading 9.14 उत्पत्तिके साधन और न्याय ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.13 धर्म और अर्थ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.13 धर्म और अर्थ मार्क्सवादी कहते हैं कि धर्म, प्रेम या परोपकारके नामपर सर्वस्व लुटा देने या प्राण न्योछावर कर देनेका भी आधार आर्थिक ही है; क्योंकि सब कुछ सन्तोष-तृप्तिके लिये ही किया जाता है। अन्यायके विरोधमें आत्मबलिदान करता हुआ भी प्राणी सब कुछ स्वार्थके उद्देश्यसे करता है, परंतु यहाँ स्वार्थका अर्थ व्यक्ति न समझकर… Continue reading 9.13 धर्म और अर्थ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.12 श्रेणी और वृत्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.12 श्रेणी और वृत्ति मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘जीविका पैदा करनेके क्रममें जो मनुष्य जिस स्थानपर है, वही उसकी श्रेणी है। मनुष्य जीविका उपार्जन करनेके ढंगके अनुसार अपने रहन-सहनका ढंग बना लेता है, अतएव जीविकोपार्जनका ढंग बदलनेसे समाजका रूप भी बदल जाता है। समाजमें पैदावारकी दृष्टिसे श्रेणियाँ अपना-अपना स्थान रखती हैं। पैदावारके फल या पैदावारके… Continue reading 9.12 श्रेणी और वृत्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.11 समाज—विकासकी कुंजी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.11 समाज—विकासकी कुंजी ‘सोशलिज्म’ का अर्थ है ‘समाजवाद’ और साम्यवादका अर्थ है समाजमें समानता लाना। समाजवादका अभिप्राय यह है कि ‘समाज ही उत्पादन-साधनोंका स्वामी हो। व्यक्तिके स्थानपर समाजका शासन होना ही समाजवाद है।’ फ्रांसके सेंट साइमन और इंग्लैण्डके राबर्ट्स ओबेनने (जिनका जन्म क्रमश: १७६० और १७७१ में हुआ था) पहले-पहल साम्यवादी विचारधारा फैलायी। उनके विचार… Continue reading 9.11 समाज—विकासकी कुंजी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.10 पाप-पुण्य और शोषण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.10 पाप-पुण्य और शोषण मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘प्रबल मनुष्य दुर्बल मनुष्योंको अपनी गुलामीमें जकड़े रखनेके लिये ही अपनी शक्तियोंका प्रयोग करता था और तदर्थ ही उसने अनेक सिद्धान्त बनाये। बहुतोंने निर्बलोंको सन्तोषका पाठ पढ़ाया और साधन-सम्पन्नोंको भी दया, सहानुभूति एवं त्यागका उपदेश किया; इस जीवनमें एवं मृत्युके बाद दूसरे जीवनमें सुखादि लानेका विश्वास दिलाया।… Continue reading 9.10 पाप-पुण्य और शोषण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.9 सामाजिक व्यवस्था ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.9 सामाजिक व्यवस्था कम्युनिष्ट यह मानते हैं कि ‘मनुष्य जिस किसी भी अवस्थामें रहा हो, उसके समक्ष कुछ सिद्धान्त, नियम एवं आदर्श रहे हैं’ परंतु उनके मतानुसार ‘समाजकी अवस्था बदलनेके साथ उनके सिद्धान्तों, नियमों एवं आदर्शोंमें भी परिवर्तन होता रहता है।’ उनकी इस मान्यताका मूल कारण यही है कि ‘सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान्, विश्वस्रष्टा ईश्वर उनकी समझमें… Continue reading 9.9 सामाजिक व्यवस्था ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.8 ज्ञानका मूल ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.8 ज्ञानका मूल मार्क्सवादी ज्ञानकी परिभाषा करते हुए कहते हैं कि ‘ज्ञान सम्बन्धोंकी चेतना, वस्तु विषय तथा आत्मविषयक जीवधारी मनुष्यके रूप हम और बाहरी दुनियाँके सम्बन्धोंकी चेतना, बाहरी दुनियाँमें व्यापक और विशिष्ट तफसीलोंके बीचका सम्बन्ध और दृष्टिभूत वस्तु तथा उसकी कल्पनाके बीचका सम्बन्ध जिसमें और जिसके द्वारा हम अस्तित्वका अनुभव करते हैं। अपना अस्तित्व और… Continue reading 9.8 ज्ञानका मूल ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.7 गुण-परिवर्तन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.7 गुण-परिवर्तन ‘पूँजीवादमें समाज और प्रकृतिका विरोध तो विद्यमान रहता है; लेकिन इस विरोधके विशिष्टरूपका निराकरण होता है भौगोलिक परिवेष्टनके गुणोंद्वारा नहीं; बल्कि पूँजीवादके विकासके मूल नियमोंके द्वारा। समाज अपने आन्तरिक नियमोंसे और अपनी उत्पादक-शक्तियोंके विकाससे हर विशेष सामाजिक संगठनोंके विशेष साधनोंद्वारा अपने भौगोलिक परिवेष्टनमें परिवर्तन करता है। जंगलोंकी कमी हो गयी है, पेड़ोंके लगाने… Continue reading 9.7 गुण-परिवर्तन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज