8.9 इतिहासका वर्ण्य-विषय मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘राजाओं, महाराजाओं, वीरपुरुषोंका वर्णन करना इतिहासका लक्ष्य न होकर समष्टि जनताकी स्वाभाविक जीवनस्थिति, उत्पादन-साधन और उनके परस्पर सम्बन्ध तथा उनके परिणामोंका निरूपण ही इतिहासका मुख्य विषय होना चाहिये।’ तदनुसार ही मार्क्सवादी प्राथमिक वर्गहीन समाज, फिर मालिक और गुलाम, फिर सामन्त एवं किसान-गुलाम, फिर पूँजीपति और मजदूर, फिर मजदूर… Continue reading 8.9 इतिहासका वर्ण्य-विषय ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
Year: 2025
8.8 राष्ट्रियताका भाव ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.8 राष्ट्रियताका भाव मार्क्सवादके अनुसार ‘राष्ट्रियता भी पूँजीवादसे ही सम्बन्धित है। यूरोपमें पूँजीवादके साथ-साथ राष्ट्रियताका उदय हुआ था। व्यापारिक स्पर्धाके फलस्वरूप पूँजीपतियोंमें राष्ट्रियताकी चेतना जागरित हुई। १५वीं सदीमें व्यापारियों और मल्लाहोंके प्रोत्साहनद्वारा यूरोपके देशोंने अन्य महाद्वीपोंकी खोज की, अंग्रेजोंने भारतवर्षमें व्यापारिक, राजनीतिक अधिकार स्थापित किया। अन्य देशोंके व्यापारियोंने व्यापारिक सुविधा प्राप्त न होनेके कारण अपनेको… Continue reading 8.8 राष्ट्रियताका भाव ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.7 इतिहास और व्यक्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.7 इतिहास और व्यक्ति स्टालिनका कहना है कि ‘इतिहास विज्ञानको वास्तविक विज्ञान बनाता है तो सामाजिक इतिहासके विकासको सम्राटों, सेनापतियों, विजेताओं तथा शासकोंके कृत्योंकी परिधिके अन्तर्गत सीमित नहीं किया जा सकता। इतिहास-विज्ञानके लिये आवश्यक है कि भौतिक मूल्योंके निर्माता लाखों, करोड़ों मजदूरोंके इतिहासके चिन्तनको अपना मूल विषय बनायें। द्वन्द्ववादके अनुसार प्रकृतिके सभी बाह्य रूपों एवं… Continue reading 8.7 इतिहास और व्यक्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.6 परिवर्तनके कारण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.6 परिवर्तनके कारण मार्क्सके मतानुसार ‘परिवर्तनका कारण न तो भौगोलिक अवस्था ही है न जनसंख्या ही; क्योंकि यूरोप सदियोंसे अपरिवर्तनशील रहा है, फिर भी वहाँ पंचायती व्यवस्था, दासप्रथा, सामन्तवादी, पूँजीवादी व्यवस्था आदि अनेक परिवर्तन हुए। जनसंख्या भारतमें इंग्लैण्ड, अमेरिकासे अधिक होनेपर भी वहाँ इतने परिवर्तन नहीं हुए।’ स्टालिनका कहना है कि ‘ऐतिहासिक भौतिकवादके अनुसार आवश्यक… Continue reading 8.6 परिवर्तनके कारण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.5 मार्क्स एवं इतिहास ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.5 मार्क्स एवं इतिहास मार्क्सवादी समाजके विचारों, सिद्धान्तों तथा राजनीतिक संस्थाओंको समाजकी सत्ता और उसकी भौतिक परिस्थितियोंके ही अनुकूल मानते हैं और समाजकी सत्ता एवं भौतिक परिस्थितियाँ उनके मतमें उत्पादन-शक्तियों तथा उत्पादन-सम्बन्धोंपर निर्भर रहती हैं। इन्हींपर समाजका ढाँचा स्थिर होता है। दासयुगमें सामाजिक रीतियाँ अन्य युगोंसे भिन्न थीं। यही बात सामन्तवादी तथा पूँजीवादी युगके लिये… Continue reading 8.5 मार्क्स एवं इतिहास ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.4 उत्पादन-शक्तियाँ और नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.4 उत्पादन-शक्तियाँ और नियम कहा जाता है कि उत्पादन-शक्तियाँ दो प्रकारकी हैं—एक चेतन, दूसरी अचेतन। अचेतन शक्तियोंके अन्तर्गत भूमि, जल, वायु, कच्चा माल, औजार, मशीनें आदि आ जाती हैं। चेतन शक्तियोंमें मजदूर, आविष्कारक, अन्वेषक, इंजीनियर आदि आ जाते हैं। जातिगत गुणों अर्थात् किसी मनुष्य-समूहकी जन्म-सिद्ध योग्यताका भी चेतन शक्तियोंमें अन्तर्भाव है। सबसे अधिक महत्त्व शारीरिक… Continue reading 8.4 उत्पादन-शक्तियाँ और नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.3 भौतिकवादी व्याख्या ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.3 भौतिकवादी व्याख्या कहा जाता है कि हीगेलके ऐतिहासिक आदर्शवादके मुकाबलेमें ही मार्क्सने अपनी प्रणालीका नाम ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद’ रखा था। इस प्रणालीद्वारा मार्क्स विभिन्न परिवर्तनों, क्रान्तियों एवं मानसिक, सामाजिक घटनाओंको उत्पन्न करनेवाले मूलस्रोतोंका पता लगाना चाहता था, इसलिये इतिहास-संचालन करनेवाले नियमोंका उसने पता लगाया। उसका कहना था—‘मनुष्योंके विवेक एवं विचारोंमें परिवर्तन करनेवाली तथा विभिन्न सामाजिक… Continue reading 8.3 भौतिकवादी व्याख्या ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.2 इतिहासकी मार्क्सीय व्याख्या ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.2 इतिहासकी मार्क्सीय व्याख्या मार्क्सके अनुसार ‘इतिहास छ: युगोंमें विभक्त है। प्रथम युगमें अति प्राचीन मनुष्य साम्यवादी संघोंमें रहता था। उस समय उत्पादन, वितरण आदि समाजवादी ढंगसे होता था। दूसरा युग दासताका है। कृषि-प्रथा गोपालनके फलस्वरूप व्यक्तिगत सम्पत्तिका जन्म हुआ। सम्पत्तिके स्वामियोंने अन्य सम्पत्तिरहित लोगोंको अपना दास बनाया। राज्य एवं तत्सम्बन्धी अन्य संस्थाओंका जन्म हुआ।… Continue reading 8.2 इतिहासकी मार्क्सीय व्याख्या ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8. ऐतिहासिक भौतिकवाद – 8.1 इतिहास क्या है? ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
मार्क्सके ऐतिहासिक भौतिकवादपर विचार करनेके पूर्व यह समझना आवश्यक है कि ‘इतिहास’ है क्या? यूनानी भाषामें इतिहास (हिस्ट्री)-का अर्थ जिज्ञासा होता है। मुसलमानोंमें शिक्षापूर्ण उच्च आदर्शका वर्णन ही इतिहास समझा जाता था। फ्रांसके प्रसिद्ध लेखक वाल्टेयरके अनुसार मनुष्यकी मानसिक शक्तिका वर्णन ही इतिहास है, छोटी-छोटी घटनाओंका वर्णन इतिहास नहीं। उसके अनुसार शासकोंका वर्णन भी इतिहास… Continue reading 8. ऐतिहासिक भौतिकवाद – 8.1 इतिहास क्या है? ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.25 अशान्तिकी जड़—आर्थिक विषमता ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.25 अशान्तिकी जड़—आर्थिक विषमता मार्क्सवादके दृष्टिकोणसे ‘वर्तमान संसारमें व्यक्तिके जीवनसे लेकर अन्ताराष्ट्रिय परिस्थितितक सभी संकटोंका कारण आर्थिक विषमता ही है। समाजमें पैदावार समाजके हितके लिये नहीं की जाती, बल्कि कुछ व्यक्तियोंके मुनाफेके लिये ही की जाती है। इसीलिये ऐसी विषमता पैदा हो जाती है। इस विषमताको कायम रखनेके लिये पूँजीवादी-समाजमें सरकारकी व्यवस्था और अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें… Continue reading 7.25 अशान्तिकी जड़—आर्थिक विषमता ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज