7.24 पूँजीवादी साम्राज्यवाद मार्क्सवादके अनुसार ‘किसी देशका पूँजीवाद जब मुनाफेके लिये अपने देशसे बाहर कदम फैलाता है, तब वह साम्राज्यवादका रूप धारण कर लेता है। प्राचीन समयका साम्राज्यवाद सैनिक आक्रमणके रूपमें आगे बढ़ता था और पराधीन देशोंका शोषण भूमि-करके रूपमें बरतता था। पूँजीवादका साम्राज्य-विस्तार आरम्भ होता है व्यापारसे। फिर अपने व्यापारको दूसरे देशोंके मुकाबलेमें सुरक्षित… Continue reading 7.24 पूँजीवादी साम्राज्यवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
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7.23 अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें पूँजीवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.23 अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें पूँजीवाद मार्क्सके अनुसार ‘वैज्ञानिक साधनोंके विकाससे पैदावारकी शक्तिके बहुत अधिक बढ़ जानेपर जब भिन्न-भिन्न देशोंके पूँजीपति अपनी पैदावारको अपने देशमें नहीं खपा सकते, तब उन्हें दूसरे देशोंके बाजारोंमें अपना माल पहुँचाना पड़ता है। पूँजीपति अपना माल दूसरे देशोंमें बेचकर मुनाफा उठाना तो पसन्द करते हैं; परंतु अपने देशमें दूसरे देशके पूँजीपतियोंका माल… Continue reading 7.23 अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें पूँजीवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.22 मार्क्सवाद एवं युद्ध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.22 मार्क्सवाद एवं युद्ध मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘युद्ध जंगलीपनका चिह्न है। स्वयं कमाकर खानेके बजाय दूसरोंसे छीनकर पेट भरना ही युद्धका स्वरूप है। सामाजिक भावना एवं सहयोगकी बुद्धि होनेसे परिवारके रूपमें संगठित होते ही आपसी लड़ाई बन्द हो गयी। एक परिवारके आदमी एक हित समझकर आपसमें न लड़कर दूसरे परिवारसे लड़ने लगे फिर लड़ाईके… Continue reading 7.22 मार्क्सवाद एवं युद्ध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.21 मार्क्सवाद एवं राष्ट्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.21 मार्क्सवाद एवं राष्ट्र परंतु जबतक सभी राष्ट्र एवं समाज इस उच्चकोटिके सिद्धान्तको मान नहीं लेते, तबतक क्या किसी सज्जन व्यक्ति या राष्ट्रको किसी कूटनीतिक व्यक्ति या राष्ट्रकी कूटनीतिका शिकार बन जाना चाहिये? रामराज्यवादी ऐसे अवसरके लिये अनिवार्यरूपसे आनेवाले युद्धका स्वागत करता है। मायावीके साथ निरी साधुतासे काम नहीं चलता— यस्मिन् यथा वर्तते यो मनुष्य-… Continue reading 7.21 मार्क्सवाद एवं राष्ट्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.20 समाजवादी सब्जबाग ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.20 समाजवादी सब्जबाग व्यक्तिगत स्वतन्त्रता यदि अच्छी वस्तु है, उससे इतना बड़ा लाभ हुआ, तो कुछ दोष होनेसे ही वह हेय नहीं होती। बिजलीसे प्रकाश फैलाया जा सकता है, मशीन भी चलायी जा सकती है और आत्महत्या भी की जा सकती है। अत: बुद्धिमानोंका कर्तव्य है कि वे ऐसा मार्ग निकालें, जिससे व्यक्तिगत स्वतन्त्रताकी रक्षा… Continue reading 7.20 समाजवादी सब्जबाग ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.19 सामाजिक संकट ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.19 सामाजिक संकट जो कहा जाता है कि ‘सम्पूर्ण उत्पादन-साधनों या मुनाफा कमानेके साधनोंका समाजीकरण हो जानेसे कोई वस्तु मुनाफाके लिये कमायी ही न जायगी, उपयोगके लिये आवश्यकताके अनुसार ही सब वस्तुओंका उत्पादन होगा, अतएव क्रय-शक्तिके घटने और बाजारमें माल न खपत होनेका प्रश्न ही नहीं उठेगा। पूँजीवादमें कल-कारखाने व्यक्तिगत होते हैं, अत: पूँजीपतिके सामने… Continue reading 7.19 सामाजिक संकट ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.18 आर्थिक संकट ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.18 आर्थिक संकट मार्क्सवादके दृष्टिकोणसे ‘पूँजीवादी समाजमें पैदावारका काम समाजके सभी लोग मिलकर करते हैं, परंतु प्रत्येक पूँजीवादी अपने ही लाभको सामने रखता है। इसलिये सम्मिलित तौरपर समाजकी आवश्यकताओंका न तो सही अनुमान ही हो सकता है और न उसके उपयुक्त पैदावार ही। पूँजीवादी समाजमें उत्पादक अपने व्यवहारके लिये नहीं, बल्कि उसे बेचकर मुनाफा कमाननेके… Continue reading 7.18 आर्थिक संकट ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.17 बड़े परिमाणमें खेती ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.17 बड़े परिमाणमें खेती मार्क्सके अनुसार पूँजीवादद्वारा उद्योग-धन्धोंके विकास और पैदावारकी अन्य वृद्धिका एक रहस्य है। पैदावारको एक स्थानपर बड़े परिमाणमें करनेपर ही उसमें आधुनिक ढंगकी बड़ी मशीनोंका व्यवहार हो सकता है, खर्च घट सकता है और मनुष्यकी पैदावारकी शक्ति बढ़ सकती है। मनुष्य जितनी ही विकसित और बड़ी मशीनपर काम करेगा, उसी परिमाणमें उसकी… Continue reading 7.17 बड़े परिमाणमें खेती ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.15 भूमि-कर ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.15 भूमि-कर निष्कर्ष यह है कि धर्मनियन्त्रित राज्यतन्त्र एक शुद्ध शास्त्रीय सुव्यवस्था है। उसी व्यवस्थामें रामचन्द्र, हरिश्चन्द्र, दिलीप, शिबि, रन्तिदेव आदि लोकप्रिय आदर्श राजर्षि हुए हैं। वे भी योग्य मन्त्रियों, नि:स्पृह सभ्योंकी सभामें कार्याकार्यका विचार करके प्रजाहितार्थ स्वसर्वस्वकी बाजी लगानेके लिये हर समय प्रस्तुत रहते थे। पर लोलुपलोग उनकी शासन-सभाओंके सभ्य भी नहीं हो सकते… Continue reading 7.15 भूमि-कर ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.14 व्यक्तिगत वैध भूमि ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.14 व्यक्तिगत वैध भूमि किसीकी भूमिपर यज्ञ या पितृश्राद्ध करनेपर भी भूमिपतिको कुछ देना आवश्यक समझा जाता है, अन्यथा भूमिपति उनके फलमें हिस्सेदार होगा। जिन्हें जड़ भौतिक प्रपंचोंसे पृथक् धर्म, परलोक अदृष्टपर भी विश्वास है, वे तो धर्मबुद्धिसे ही कर देना उचित समझते हैं। उसे वे शोषण नहीं समझते। जमींदारी, जागीरदारीके सम्बन्धमें कम्युनिष्ट आदिकी धारणाएँ… Continue reading 7.14 व्यक्तिगत वैध भूमि ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज