9.11 समाज—विकासकी कुंजी ‘सोशलिज्म’ का अर्थ है ‘समाजवाद’ और साम्यवादका अर्थ है समाजमें समानता लाना। समाजवादका अभिप्राय यह है कि ‘समाज ही उत्पादन-साधनोंका स्वामी हो। व्यक्तिके स्थानपर समाजका शासन होना ही समाजवाद है।’ फ्रांसके सेंट साइमन और इंग्लैण्डके राबर्ट्स ओबेनने (जिनका जन्म क्रमश: १७६० और १७७१ में हुआ था) पहले-पहल साम्यवादी विचारधारा फैलायी। उनके विचार… Continue reading 9.11 समाज—विकासकी कुंजी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
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9.9 सामाजिक व्यवस्था ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.9 सामाजिक व्यवस्था कम्युनिष्ट यह मानते हैं कि ‘मनुष्य जिस किसी भी अवस्थामें रहा हो, उसके समक्ष कुछ सिद्धान्त, नियम एवं आदर्श रहे हैं’ परंतु उनके मतानुसार ‘समाजकी अवस्था बदलनेके साथ उनके सिद्धान्तों, नियमों एवं आदर्शोंमें भी परिवर्तन होता रहता है।’ उनकी इस मान्यताका मूल कारण यही है कि ‘सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान्, विश्वस्रष्टा ईश्वर उनकी समझमें… Continue reading 9.9 सामाजिक व्यवस्था ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.8 ज्ञानका मूल ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.8 ज्ञानका मूल मार्क्सवादी ज्ञानकी परिभाषा करते हुए कहते हैं कि ‘ज्ञान सम्बन्धोंकी चेतना, वस्तु विषय तथा आत्मविषयक जीवधारी मनुष्यके रूप हम और बाहरी दुनियाँके सम्बन्धोंकी चेतना, बाहरी दुनियाँमें व्यापक और विशिष्ट तफसीलोंके बीचका सम्बन्ध और दृष्टिभूत वस्तु तथा उसकी कल्पनाके बीचका सम्बन्ध जिसमें और जिसके द्वारा हम अस्तित्वका अनुभव करते हैं। अपना अस्तित्व और… Continue reading 9.8 ज्ञानका मूल ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.7 गुण-परिवर्तन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.7 गुण-परिवर्तन ‘पूँजीवादमें समाज और प्रकृतिका विरोध तो विद्यमान रहता है; लेकिन इस विरोधके विशिष्टरूपका निराकरण होता है भौगोलिक परिवेष्टनके गुणोंद्वारा नहीं; बल्कि पूँजीवादके विकासके मूल नियमोंके द्वारा। समाज अपने आन्तरिक नियमोंसे और अपनी उत्पादक-शक्तियोंके विकाससे हर विशेष सामाजिक संगठनोंके विशेष साधनोंद्वारा अपने भौगोलिक परिवेष्टनमें परिवर्तन करता है। जंगलोंकी कमी हो गयी है, पेड़ोंके लगाने… Continue reading 9.7 गुण-परिवर्तन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.6 अन्तर्विरोधपर बुखारिन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.6 अन्तर्विरोधपर बुखारिन ‘एक-दूसरेकी विरोधी भिन्न कार्यकारी शक्तियाँ पृथ्वीमें वर्तमान हैं। व्यतिक्रमके रूपमें इन शक्तियोंका समीकरण होता है, तब विरामकी स्थिति होती है। यानी उनके वास्तविक विरोधपर एक आवरण पड़ जाता है। लेकिन किसी एक शक्तिमें तनिकमात्र परिवर्तन करनेहीसे अन्तर्विरोधोंका पुनराभास होता है और उस समीकरणका अन्त होता है और यदि एक नये समीकरणकी सृष्टि… Continue reading 9.6 अन्तर्विरोधपर बुखारिन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.4 ऐतिहासिक द्वन्द्ववाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.4 ऐतिहासिक द्वन्द्ववाद कहा जाता है कि ‘इतिहासके लिये भी यही बात लागू है। सब सभ्य जातियोंका, जो एक निर्दिष्ट अवस्थाको पार कर चुकी हैं, आरम्भ भूमिके सामृद्धिक स्वामित्वसे होता है। कृषिके विकासके लिये एक स्तरपर भूमिका सामूहिक स्वामित्व उत्पादन-क्रियाके लिये बाधकस्वरूप बन जाता है। इसका अन्त किया जाता है, इसका प्रतिषेध होता है और… Continue reading 9.4 ऐतिहासिक द्वन्द्ववाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.3 प्रतिषेधका प्रतिषेध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.3 प्रतिषेधका प्रतिषेध इसी तरह प्रतिषेधके प्रतिषेधका उदाहरण मार्क्सवादी उपस्थित करते हैं कि ‘यदि यवका एक दाना जमीनमें डाला जाय तो गर्मी और नमीके प्रभावसे इसमें एक विशेष परिवर्तन होता है। इसमेंसे पौधा उगने लगता है। उस दानेके अस्तित्वका अन्त हो जाता है। उसका प्रतिषेध हो जाता है। उसके स्थानपर जो पौधा उगता है, वह… Continue reading 9.3 प्रतिषेधका प्रतिषेध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.2 पूँजीका स्वरूप ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.2 पूँजीका स्वरूप कहा जाता है कि ‘अर्थशास्त्रके क्षेत्रमें पूँजी स्वयं उदाहरण है। वह धनका एक निम्नतम परिमाण है, जिसके रहनेपर ही उसका स्वामी पूँजीपति कहला सकता है। मार्क्सने उद्योगकी किसी शाखाके एक श्रमिकका उदाहरण लिया है, जो आठ घण्टेतक अपने लिये अर्थात् अपनी मजदूरीका अर्थ उत्पन्न करनेके लिये श्रम करता है और चार घण्टे… Continue reading 9.2 पूँजीका स्वरूप ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.8 राष्ट्रियताका भाव ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.8 राष्ट्रियताका भाव मार्क्सवादके अनुसार ‘राष्ट्रियता भी पूँजीवादसे ही सम्बन्धित है। यूरोपमें पूँजीवादके साथ-साथ राष्ट्रियताका उदय हुआ था। व्यापारिक स्पर्धाके फलस्वरूप पूँजीपतियोंमें राष्ट्रियताकी चेतना जागरित हुई। १५वीं सदीमें व्यापारियों और मल्लाहोंके प्रोत्साहनद्वारा यूरोपके देशोंने अन्य महाद्वीपोंकी खोज की, अंग्रेजोंने भारतवर्षमें व्यापारिक, राजनीतिक अधिकार स्थापित किया। अन्य देशोंके व्यापारियोंने व्यापारिक सुविधा प्राप्त न होनेके कारण अपनेको… Continue reading 8.8 राष्ट्रियताका भाव ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.7 इतिहास और व्यक्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
8.7 इतिहास और व्यक्ति स्टालिनका कहना है कि ‘इतिहास विज्ञानको वास्तविक विज्ञान बनाता है तो सामाजिक इतिहासके विकासको सम्राटों, सेनापतियों, विजेताओं तथा शासकोंके कृत्योंकी परिधिके अन्तर्गत सीमित नहीं किया जा सकता। इतिहास-विज्ञानके लिये आवश्यक है कि भौतिक मूल्योंके निर्माता लाखों, करोड़ों मजदूरोंके इतिहासके चिन्तनको अपना मूल विषय बनायें। द्वन्द्ववादके अनुसार प्रकृतिके सभी बाह्य रूपों एवं… Continue reading 8.7 इतिहास और व्यक्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज