8.2 इतिहासकी मार्क्सीय व्याख्या ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.2 इतिहासकी मार्क्सीय व्याख्या मार्क्सके अनुसार ‘इतिहास छ: युगोंमें विभक्त है। प्रथम युगमें अति प्राचीन मनुष्य साम्यवादी संघोंमें रहता था। उस समय उत्पादन, वितरण आदि समाजवादी ढंगसे होता था। दूसरा युग दासताका है। कृषि-प्रथा गोपालनके फलस्वरूप व्यक्तिगत सम्पत्तिका जन्म हुआ। सम्पत्तिके स्वामियोंने अन्य सम्पत्तिरहित लोगोंको अपना दास बनाया। राज्य एवं तत्सम्बन्धी अन्य संस्थाओंका जन्म हुआ।… Continue reading 8.2 इतिहासकी मार्क्सीय व्याख्या ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8. ऐतिहासिक भौतिकवाद – 8.1 इतिहास क्या है? ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

मार्क्सके ऐतिहासिक भौतिकवादपर विचार करनेके पूर्व यह समझना आवश्यक है कि ‘इतिहास’ है क्या? यूनानी भाषामें इतिहास (हिस्ट्री)-का अर्थ जिज्ञासा होता है। मुसलमानोंमें शिक्षापूर्ण उच्च आदर्शका वर्णन ही इतिहास समझा जाता था। फ्रांसके प्रसिद्ध लेखक वाल्टेयरके अनुसार मनुष्यकी मानसिक शक्तिका वर्णन ही इतिहास है, छोटी-छोटी घटनाओंका वर्णन इतिहास नहीं। उसके अनुसार शासकोंका वर्णन भी इतिहास… Continue reading 8. ऐतिहासिक भौतिकवाद – 8.1 इतिहास क्या है? ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.21 मार्क्सवाद एवं राष्ट्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.21 मार्क्सवाद एवं राष्ट्र परंतु जबतक सभी राष्ट्र एवं समाज इस उच्चकोटिके सिद्धान्तको मान नहीं लेते, तबतक क्या किसी सज्जन व्यक्ति या राष्ट्रको किसी कूटनीतिक व्यक्ति या राष्ट्रकी कूटनीतिका शिकार बन जाना चाहिये? रामराज्यवादी ऐसे अवसरके लिये अनिवार्यरूपसे आनेवाले युद्धका स्वागत करता है। मायावीके साथ निरी साधुतासे काम नहीं चलता— यस्मिन् यथा वर्तते यो मनुष्य-… Continue reading 7.21 मार्क्सवाद एवं राष्ट्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7. मार्क्सीय अर्थ-व्यवस्था – 7.1 मूल्यका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

कहा जाता है, पूँजीवादी समाजके जीवन और गतिका आधार होता है खरीदना, बेचना तथा वस्तुओं एवं श्रमका विनिमय ही परस्पर सम्बन्धका सार है। मार्क्सके मतानुसार ‘पूँजीवादके अन्तर्गत जो माल तैयार होकर बाजारमें जाता है, उसके दो तरहके मूल्य होते हैं—एक उपयोग-सम्बन्धी, दूसरा विनिमयसम्बन्धी। पहलेका अभिप्राय उस वस्तुके गुणसे है, जिससे खरीदनेवालेकी शारीरिक या मानसिक आवश्यकताकी… Continue reading 7. मार्क्सीय अर्थ-व्यवस्था – 7.1 मूल्यका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.10 संघटनकी कुंजी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.10 संघटनकी कुंजी यह तो हुई विघटनकी बात। अब जहाँ ‘सङ्घे शक्ति: कलौ युगे’ की बात आजकल बहुत होती है, वहाँ भी संघटनकी योजनाएँ कैसे सफल हों, इस विषयमें सभी परेशान हैं। वास्तवमें जो संघटनपर रातों-दिन व्याख्यान दे और लेख लिख रहे हैं, जो स्वयं प्रान्त, समाज, राष्ट्रके संघटनपर जमीन-आसमानके कुलाबे एक किया करते हैं,… Continue reading 6.10 संघटनकी कुंजी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.7 वर्ग-विद्वेष ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.7 वर्ग-विद्वेष कहा जाता है कि ‘जिन प्राचीन हब्शी-भिल्ल आदि जंगली जातियोंमें प्राचीनकालके अनुसार जीवन व्यतीत होता है, उनमें व्यक्तिगत सम्पत्तिका अभाव है अथवा उन्नति नहीं हुई। उनमें न वर्ग-भेद है, न किसी वर्ग-विशेषका अधिकार है—न वर्ग-विरोध है। गाँवके मुखिया, पण्डित, पंच, प्रचलित रीतियों, धार्मिक अनुष्ठानोंका पालन कराते हैं, परंतु व्यापारकी वृद्धि और युद्धोंके फलस्वरूप… Continue reading 6.7 वर्ग-विद्वेष ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.6 उत्पादन और नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.6 उत्पादन और नियम उत्पत्तिके पुराने साधनों एवं पद्धतियोंमें रद्दोबदल होनेसे उत्पादनमें विस्तार अवश्य हो जाता है, उत्पन्न वस्तुओंमें सस्तापन भी आता है तथा आमदनीमें भी वृद्धि हो जाती है। पर माल खपतके लिये बाजारोंकी आवश्यकता, माल भेजने तथा कारखानोंके लिये कोयले, पेट्रोलके खानोंकी आवश्यकता, बाजारों एवं कोयले-पेट्रोल आदिके लिये संघर्ष एवं बेकारीकी समस्या अवश्य… Continue reading 6.6 उत्पादन और नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.3 शाश्वत नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.3 शाश्वत नियम पर सिद्धान्तत: राज्यशक्तिको किसी भी धार्मिक, आध्यात्मिक नियन्त्रणमें ही रहना उचित है, अन्यथा अनियन्त्रित उच्छृंखल राज्यशक्ति राष्ट्रके लिये भीषण सिद्ध हो सकती है। ‘बृहदारण्यक उपनिषद्’ में कहा गया है कि ‘धर्म क्षत्रका भी क्षत्र है’, अर्थात् धर्मपर राजाका शासन नहीं चलता, अपितु राजापर धर्मका शासन चलता है। जैसे बिना नकेलके ऊँट, बिना… Continue reading 6.3 शाश्वत नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

नाम अपराध का परिचय

दो मूल सिद्धांत/अपराध: अंतर्संबंध और अपराधों से बचाव: नाम अपराध के विशिष्ट उदाहरण: स्वतंत्रता, उत्तरदायित्व और सभ्यता:

4.6 संधियोनियाँ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

4.6 संधियोनियाँ इसी तरह संधियोनियोंके आधारपर भी विकाससिद्धिका प्रयत्न किया जाता है। ‘जो प्राणी बिलकुल दो श्रेणियों-जैसा आकार रखते हैं, वे संधियोनिके हैं—जैसे चमगादड़, डकविल, आर्किओप्टेरिक्स, ओपोसम और कंगारू। जिनके कुछ अंग निकम्मे हो गये हैं, जैसे ह्वेल, मयूर, शुतुर्मुर्ग और पेंग्विन एवं जिनके कई अधिक अंग स्फुटित हो गये हैं, जैसे कई स्तनोंकी स्त्रियाँ,… Continue reading 4.6 संधियोनियाँ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

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