7.14 व्यक्तिगत वैध भूमि किसीकी भूमिपर यज्ञ या पितृश्राद्ध करनेपर भी भूमिपतिको कुछ देना आवश्यक समझा जाता है, अन्यथा भूमिपति उनके फलमें हिस्सेदार होगा। जिन्हें जड़ भौतिक प्रपंचोंसे पृथक् धर्म, परलोक अदृष्टपर भी विश्वास है, वे तो धर्मबुद्धिसे ही कर देना उचित समझते हैं। उसे वे शोषण नहीं समझते। जमींदारी, जागीरदारीके सम्बन्धमें कम्युनिष्ट आदिकी धारणाएँ… Continue reading 7.14 व्यक्तिगत वैध भूमि ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
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7.13 पूँजीवाद और कृषि ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.13 पूँजीवाद और कृषि कृषिके सम्बन्धमें मार्क्सवादियोंका कहना है कि उद्योग-धन्धोंमें पूँजीवादी ढंगपर संगठित हो जानेसे पहले भी खेती और खेतीसे सम्बन्ध रखनेवाले कारोबार पशुपालन, फलोंको उत्पन्न करना आदि जारी थे और आजतक वे सब काम कहीं उसी रूपमें और कहीं परिवर्तित रूपमें चले जा रहे हैं। ‘पूँजीवादका पहला प्रभाव खेतीपर यह पड़ा कि उद्योग-धन्धोंके… Continue reading 7.13 पूँजीवाद और कृषि ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.12 सर्वहारा और क्रान्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.12 सर्वहारा और क्रान्ति मार्क्सवादियोंके अनुसार ‘साधनहीन श्रेणी अपनी परिस्थितियोंके कारण मुख्यत: तीन भागोंमें बँटी हुई है, जिनमें किसान, मजदूर और निम्न, मध्यम श्रेणीके नौकरी पेशाके लोग हैं। साधनहीन श्रेणीके इन तीनों भागोंमें औद्योगिक देशोंमें मजदूर लोग संख्यामें सबसे अधिक हैं। संख्यामें सबसे अधिक होनेके अलावा उनका घरबार आदि कुछ भी शेष न रहनेसे समाजकी… Continue reading 7.12 सर्वहारा और क्रान्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.11 अतिरिक्त आय और अन्तर्विरोध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.11 अतिरिक्त आय और अन्तर्विरोध मार्क्सवादियोंका कहना है कि ‘समाजकी कोई भी व्यवस्था जब पूर्ण विकासको प्राप्त हो चुकती है और उस व्यवस्थामें समाजके लिये आगे विकास करनेका अवसर नहीं रहता तो उस व्यवस्थाको तोड़नेके लिये स्वयं ही विरोधी शक्ति पैदा हो जाती है, जो उसे तोड़कर नयी व्यवस्थाका मार्ग तैयार कर देती है।’ मार्क्सवादके… Continue reading 7.11 अतिरिक्त आय और अन्तर्विरोध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.10 पूँजी और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.10 पूँजी और श्रम अतिरिक्त श्रमके दरके सम्बन्धमें मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘पूँजी या पैदावारके साधनोंको हम इस प्रकार बाँट सकते हैं। एक वे साधन, जो एक हदतक स्थायी हैं, उदाहरणत: इमारतें और मशीनें, दूसरा कच्चा माल, तीसरे मजदूरको मजदूरी देनेके लिये पूँजी। पूँजीका जो भाग पैदावारके स्थायी साधनोंपर खर्च होता है, वह एक निश्चित… Continue reading 7.10 पूँजी और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.9 श्रम और मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.9 श्रम और मुनाफा कहा जाता है कि ‘पूँजीपतिके हाथमें पूँजी होनेके कारण पैदावारके साधन उसके हाथमें चले जाते हैं। पूँजीसे पूँजी ही पैदा होती है। यह पूँजी भी शोषणसे इकट्ठी होती है। बड़े परिमाणमें मुनाफेके लिये पैदावार आरम्भ होनेसे पहले मामूलीरूपसे व्यापार चलता है, उपयोगकी वस्तुओंको सस्ते दामसे खरीदकर अधिक दाममें बेचकर मुनाफा कमाया… Continue reading 7.9 श्रम और मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.8 अतिरिक्त मूल्य और शोषण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.8 अतिरिक्त मूल्य और शोषण कहा जाता है कि ‘कला-कौशल उद्योग-धन्धोंके विकासके पहले जब दास-प्रथा थी, तब दासोंका भी शोषण अतिरिक्त श्रमके रूपमें होता था। दास एवं गुलामको केवल अन्न और वस्त्र दिया जाता था। वह भी उतना ही जितना कि उसके शरीरमें परिश्रम करनेकी शक्ति कायम रखनेके लिये पर्याप्त था। दासद्वारा कराये गये परिश्रमके… Continue reading 7.8 अतिरिक्त मूल्य और शोषण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.7 अतिरिक्त श्रम और मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.7 अतिरिक्त श्रम और मुनाफा मार्क्सवादियोंका कहना है कि ‘मजदूरको मेहनतके फलका वह भाग जिसका दाम मजदूरको नहीं मिला, मालिकका मुनाफा है।’ मजदूर जितने समयतक मेहनत कर परिश्रमकी शक्तिका दाम पैदा करता है, उससे जितना भी वह अधिक करेगा, वह सब मालिकका मुनाफा होगा। यदि वह पाँच घंटे काम करके अपने परिश्रमकी शक्तिका दाम पूरा… Continue reading 7.7 अतिरिक्त श्रम और मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.6 लाभ या मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.6 लाभ या मुनाफा कहा जाता है कि ‘बिक्रीके लिये माल या सौदा तैयार करनेवाला मनुष्य माल बनानेके लिये कुछ सामान खरीदता है। खरीदे हुए सामानको अपनी मेहनतसे बिक्रीयोग्य माल या सौदा तैयार करके उसे बाजारमें बेचनेसे जो दाम मिलता है, उसमेंसे खरीदे हुए सामानका दाम निकाल देनेपर बाकी बचा हुआ दाम लाभ या मुनाफा… Continue reading 7.6 लाभ या मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.5 उपयोगी वस्तु और सौदेकी वस्तु ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.5 उपयोगी वस्तु और सौदेकी वस्तु कहा जाता है कि ‘उपयोगी पदार्थोंकी पैदावार आवश्यकता पूर्ण करनेके लिये होती है। सौदेकी पैदावार विनिमयके लिये होती है, आवश्यकता पूर्ण करनेके लिये पैदावार करनेमें मुनाफा उद्देश्य नहीं रहता। विनिमयके लिये पैदा करनेमें पैदावारका उद्देश्य उपयोग नहीं, किंतु मुनाफा कमाना ही रहता है। पूँजीवादीका सब पैदावार विनिमयके लिये होता… Continue reading 7.5 उपयोगी वस्तु और सौदेकी वस्तु ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज