7.10 पूँजी और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.10 पूँजी और श्रम अतिरिक्त श्रमके दरके सम्बन्धमें मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘पूँजी या पैदावारके साधनोंको हम इस प्रकार बाँट सकते हैं। एक वे साधन, जो एक हदतक स्थायी हैं, उदाहरणत: इमारतें और मशीनें, दूसरा कच्चा माल, तीसरे मजदूरको मजदूरी देनेके लिये पूँजी। पूँजीका जो भाग पैदावारके स्थायी साधनोंपर खर्च होता है, वह एक निश्चित… Continue reading 7.10 पूँजी और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.9 श्रम और मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.9 श्रम और मुनाफा कहा जाता है कि ‘पूँजीपतिके हाथमें पूँजी होनेके कारण पैदावारके साधन उसके हाथमें चले जाते हैं। पूँजीसे पूँजी ही पैदा होती है। यह पूँजी भी शोषणसे इकट्ठी होती है। बड़े परिमाणमें मुनाफेके लिये पैदावार आरम्भ होनेसे पहले मामूलीरूपसे व्यापार चलता है, उपयोगकी वस्तुओंको सस्ते दामसे खरीदकर अधिक दाममें बेचकर मुनाफा कमाया… Continue reading 7.9 श्रम और मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.8 अतिरिक्त मूल्य और शोषण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.8 अतिरिक्त मूल्य और शोषण कहा जाता है कि ‘कला-कौशल उद्योग-धन्धोंके विकासके पहले जब दास-प्रथा थी, तब दासोंका भी शोषण अतिरिक्त श्रमके रूपमें होता था। दास एवं गुलामको केवल अन्न और वस्त्र दिया जाता था। वह भी उतना ही जितना कि उसके शरीरमें परिश्रम करनेकी शक्ति कायम रखनेके लिये पर्याप्त था। दासद्वारा कराये गये परिश्रमके… Continue reading 7.8 अतिरिक्त मूल्य और शोषण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.7 अतिरिक्त श्रम और मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.7 अतिरिक्त श्रम और मुनाफा मार्क्सवादियोंका कहना है कि ‘मजदूरको मेहनतके फलका वह भाग जिसका दाम मजदूरको नहीं मिला, मालिकका मुनाफा है।’ मजदूर जितने समयतक मेहनत कर परिश्रमकी शक्तिका दाम पैदा करता है, उससे जितना भी वह अधिक करेगा, वह सब मालिकका मुनाफा होगा। यदि वह पाँच घंटे काम करके अपने परिश्रमकी शक्तिका दाम पूरा… Continue reading 7.7 अतिरिक्त श्रम और मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.6 लाभ या मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.6 लाभ या मुनाफा कहा जाता है कि ‘बिक्रीके लिये माल या सौदा तैयार करनेवाला मनुष्य माल बनानेके लिये कुछ सामान खरीदता है। खरीदे हुए सामानको अपनी मेहनतसे बिक्रीयोग्य माल या सौदा तैयार करके उसे बाजारमें बेचनेसे जो दाम मिलता है, उसमेंसे खरीदे हुए सामानका दाम निकाल देनेपर बाकी बचा हुआ दाम लाभ या मुनाफा… Continue reading 7.6 लाभ या मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.5 उपयोगी वस्तु और सौदेकी वस्तु ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.5 उपयोगी वस्तु और सौदेकी वस्तु कहा जाता है कि ‘उपयोगी पदार्थोंकी पैदावार आवश्यकता पूर्ण करनेके लिये होती है। सौदेकी पैदावार विनिमयके लिये होती है, आवश्यकता पूर्ण करनेके लिये पैदावार करनेमें मुनाफा उद्देश्य नहीं रहता। विनिमयके लिये पैदा करनेमें पैदावारका उद्देश्य उपयोग नहीं, किंतु मुनाफा कमाना ही रहता है। पूँजीवादीका सब पैदावार विनिमयके लिये होता… Continue reading 7.5 उपयोगी वस्तु और सौदेकी वस्तु ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.4 अतिरिक्त लाभ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.4 अतिरिक्त लाभ मशीनोंके आविष्कार होनेपर मशीनोंद्वारा लाखों मजदूरोंका काम हो जाता है। फिर तो मशीनकी कमाईका फल मशीन-मालिकको मिलना ठीक ही है। कहा जाता है कि ‘जमीन खोदनेवाले मजदूरको एक घंटेके परिश्रमका फल उतना नहीं मिलता, जितना कि एक इंजीनियरके परिश्रमका होता है।’ इसका कारण मार्क्सवादियोंकी दृष्टिसे यह है कि ‘जमीन खोदनेका काम मनुष्य… Continue reading 7.4 अतिरिक्त लाभ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.3 मजदूरी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.3 मजदूरी कहा जाता है, ‘यद्यपि मालूम पड़ता है, मजदूरको उसके श्रमके बदले पूरी मजदूरी मिल रही है, परंतु उसको घोड़ाको दाना देनेके तुल्य केवल उतनी ही मजदूरी दी जाती है, जितनेमें वह जीवन-निर्वाह कर सके और उसमें काम करनेकी शक्ति बनी रहे। जब कभी वस्तुओंकी दर घट जाती है, तो मजदूरीका परिमाण ज्यों-का-त्यों बना… Continue reading 7.3 मजदूरी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.2 मूल्य और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.2 मूल्य और श्रम कहा जाता है, ‘मशीनोंके नये आविष्कारों एवं उत्पादनके कामोंमें दक्षता आनेसे कम श्रममें वस्तु उत्पन्न होने लगती है। इसीलिये वस्तुका दाम कम हो जाता है। अत: सिद्ध है कि श्रम ही विनिमय-मूल्यका आधार है।’ पर यह बात ठीक नहीं जँचती। कारण, दूसरा पक्ष यह कह सकता है कि मालकी अधिकताके कारण… Continue reading 7.2 मूल्य और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7. मार्क्सीय अर्थ-व्यवस्था – 7.1 मूल्यका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

कहा जाता है, पूँजीवादी समाजके जीवन और गतिका आधार होता है खरीदना, बेचना तथा वस्तुओं एवं श्रमका विनिमय ही परस्पर सम्बन्धका सार है। मार्क्सके मतानुसार ‘पूँजीवादके अन्तर्गत जो माल तैयार होकर बाजारमें जाता है, उसके दो तरहके मूल्य होते हैं—एक उपयोग-सम्बन्धी, दूसरा विनिमयसम्बन्धी। पहलेका अभिप्राय उस वस्तुके गुणसे है, जिससे खरीदनेवालेकी शारीरिक या मानसिक आवश्यकताकी… Continue reading 7. मार्क्सीय अर्थ-व्यवस्था – 7.1 मूल्यका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

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