4.12 जड या चेतन? जड संसार जड परमाणुओंके एकत्रित होने या जड विद्युत्कणोंके संघर्ष अथवा प्रकृतिके हलचलमात्रका परिणाम नहीं है; किंतु अखण्ड सत्ता अखण्ड बोध परमानन्दस्वरूप परमात्माकी अघटितघटनापटीयसी मायाशक्तिका परिणाम है। जैसे कल-कारखाने, रेल, तार, रेडियो, वायुयान, परमाणुबम, हाइड्रोजन बम आदि उत्पादक, पालक, संहारक अनेक यन्त्रोंका निर्माण जड-प्रकृति आदिसे सम्पन्न नहीं होता, किंतु उनके लिये… Continue reading 4.12 जड या चेतन? ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
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4.11 भाषा-विज्ञान ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.11 भाषा-विज्ञान ज्ञानके लिये भाषा भी अपेक्षित होती है; क्योंकि ऐसा कोई भी ज्ञान नहीं होता, जिसमें सूक्ष्म शब्दका अनुवेध न हो। भाषा भी सीखकर ही बोली जाती है। माता तथा कुटुम्बियोंकी बोलचाल सुनकर ही प्राणी बोलता है। स्वतन्त्रतासे कोई नयी भाषा बना भी नहीं सकता। कहते हैं कि गूँगे बहरे भी होते हैं। वे… Continue reading 4.11 भाषा-विज्ञान ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.10 मानवसृष्टिका मूलस्थान ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.10 मानवसृष्टिका मूलस्थान ‘इसी तरह जब समस्त मनुष्य बन्दरोंसे उत्पन्न हुए हैं, तब जहाँ-जहाँ बन्दरोंका निवास है, वहीं मनुष्योंकी उत्पत्ति हुई और जब मनुष्योंकी उत्पत्ति वनमानुषोंसे हुई, तब वनमानुष जहाँ-जहाँ मिलते हैं, वहाँ मनुष्योंकी उत्पत्ति हुई। वनमानुष अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, मेडागास्कर, जावा आदिमें होते हैं। वहाँका नीग्रोदल सभ्यतामें अबतक भी मनुष्य-समुदायसे पीछे है। उनमें कई जातियाँ… Continue reading 4.10 मानवसृष्टिका मूलस्थान ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.9 मनुष्य-जाति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.9 मनुष्य-जाति ‘मनुष्य-जातिका विकास वनमनुष्योंसे हुआ है’, ‘जावाद्वीपके कलिंग नामक मनुष्य अधिकतर वनमनुष्योंसे मिलते हैं, अत: वे ही मनुष्य-जातिके पूर्वपितामह हैं’, यह सब कथन भ्रान्तिपूर्ण हैं। अतएव जो कहा जाता है कि ‘यही मनुष्य-समुदायकी समस्त शाखाओंका जन्मदाता है’ यह सब भी भ्रान्तिपूर्ण है; क्योंकि जब विकासवादका सिद्धान्त ही खण्डित हो गया, तब उसके आधारपर शास्त्र-विरुद्ध… Continue reading 4.9 मनुष्य-जाति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.8 कृत्रिम चुनाव ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.8 कृत्रिम चुनाव कृत्रिम चुनावके भी तीन नियम हैं—(१) अमुक मर्यादातक कृत्रिम होनेपर संतति होती है, (२) अमुक मर्यादाके बाद अपनी पहली पीढ़ियोंके रूपको ही हो जाती है और (३) अमुक मर्यादाके बाद वंश बन्द हो जाता है। पहला नियम प्राय: सर्वत्र प्रसिद्ध है। इसीके अनुसार मनुष्य पशुओं एवं वृक्षोंके अच्छे बीज पैदा करते हैं।… Continue reading 4.8 कृत्रिम चुनाव ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.7 प्राकृतिक चुनाव ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.7 प्राकृतिक चुनाव विकासकी दूसरी विधि डार्विनके प्राकृतिक चुनावकी है, जिसके पाँच तत्त्व हैं—(१) सर्वत्र विद्यमान परिवर्तन है, (२) अत्युत्पादन, (३) जीवन संग्राम, (४) अयोग्योंका नाश और योग्योंकी रक्षा तथा (५) योग्यताओंका संततिमें संक्रमण। परिवर्तनका अभिप्राय यह है कि प्रत्येक प्राणीकी संततिमें भी भेद होता है। इस भेदका भी नियम है। इंग्लैण्डमें सबसे अधिक संख्या… Continue reading 4.7 प्राकृतिक चुनाव ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.6 संधियोनियाँ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.6 संधियोनियाँ इसी तरह संधियोनियोंके आधारपर भी विकाससिद्धिका प्रयत्न किया जाता है। ‘जो प्राणी बिलकुल दो श्रेणियों-जैसा आकार रखते हैं, वे संधियोनिके हैं—जैसे चमगादड़, डकविल, आर्किओप्टेरिक्स, ओपोसम और कंगारू। जिनके कुछ अंग निकम्मे हो गये हैं, जैसे ह्वेल, मयूर, शुतुर्मुर्ग और पेंग्विन एवं जिनके कई अधिक अंग स्फुटित हो गये हैं, जैसे कई स्तनोंकी स्त्रियाँ,… Continue reading 4.6 संधियोनियाँ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.5 गर्भ-शास्त्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.5 गर्भ-शास्त्र कहा जाता है कि ‘गर्भ-शास्त्र’ के आधारपर विकास सिद्ध होता है। पानीमें पड़े हुए पत्तों या लकड़ियोंपर जो लसदार काले चिकने कण दिखायी पड़ते हैं, वे मेढकोंके अण्डे हैं। तीन-चार दिनमें ये कण या पिण्ड पूँछदार और चपटे सिरवाले जन्तुका आकार धारण कर लेते हैं। फिर इनके गलेके पास मछलियोंकी तरह श्वास लेनेके… Continue reading 4.5 गर्भ-शास्त्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.4 लुप्त-जन्तु ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4.4 लुप्त-जन्तु यह भी कहा जाता है कि ‘पृथ्वीकी तहोंमें लुप्त हुए पाषाणमय प्राणियोंकी खोजसे भी विकास सिद्ध होता है। प्राणियोंकी शृंखलाकी कुछ कड़ियाँ नहीं मिलतीं; क्योंकि वे आज लुप्त हो चुकी हैं। ‘लुप्त-जन्तु-शास्त्र’ से वर्तमानकालमें अविद्यमान लुप्त जन्तुओंका पता लगाया जाता है। एल० म्यूजियममें घोड़ेकी, साउथ कैन्सिंगटनमें हाथी-दाँतोंकी, ब्रूसेल्समें इग्बेनोडसकी और किस्टल् पैलेस, न्यूयार्क,… Continue reading 4.4 लुप्त-जन्तु ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4. विकासवाद – 4.1 डार्विनका मत ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
4. विकासवाद (प्राणिशास्त्र, शरीर-रचना) आजकल धर्म, संस्कृति, राजनीति, भाषाविज्ञान, इतिहास सभी क्षेत्रोंमें विकासवाद सिद्धान्त लागू किया जा रहा है। आधुनिक विज्ञान तथा जड-भौतिकवादका एक प्रकारसे यही मूल हो रहा है। बहुत-से भारतीय विद्वान् भी इसे ही मानकर भारतीय विषयोंकी व्याख्या करते हैं। मार्क्सवादके सिद्धान्तोंका आधार भी बहुत कुछ विकासवाद ही है। अत: विकासवादका सिद्धान्त और… Continue reading 4. विकासवाद – 4.1 डार्विनका मत ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज